ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
“तुम अभी वायदा कर चुकी हो!” चन्दर ने बहुत आजिजी से कहा।
“वायदा कैसा? तुम कब अपने वायदे निभाते हो? और फिर यह धोखा देकर वायदा कराना क्या? हिम्मत थी तो साफ-साफ कहते हमसे! हमारे मन में आता सो कहते। हमें इस तरह से बाँध कर क्यों बलिदान चढ़ा रहे हो!” और सुधा मारे गुस्से के रोने लगी।
चन्दर स्तब्ध। उसने इस दृश्य की कल्पना ही नहीं की थी। वह क्षण भर खड़ा रहा। वह क्या कहे सुधा से, कुछ समझ ही में नहीं आता था। वह गया और रोती हुई सुधा के कंधे पर हाथ रख दिया। “हटो उधर!” सुधा ने बहुत रुखाई से हाथ हटा दिया और आँचल से सिर ढकती हुई बोली, “मैं ब्याह नहीं करूँगी, कभी नहीं करूँगी। किसी से नहीं करूँगी। तुम सभी लोगों ने मिलकर मुझे मार डालने की ठानी है। तो मैं अभी सिर पटककर मर जाऊँगी।” और मारे तैश के सचमुच सुधा ने अपना सिर दीवार पर पटक दिया। “अरे!” दौडक़र चन्दर, ने सुधा को पकड़ लिया। मगर सुधा ने गरजकर कहा, “दूर हटो चन्दर, छूना मत मुझे।” और जैसे उसमें जाने कहाँ की ताकत आ गयी है, उसने अपने को छुड़ा लिया।
चन्दर ने दबी जबान से कहा, “छिः सुधा! यह तुमसे उम्मीद नहीं थी मुझे। यह भावुकता तुम्हें शोभा नहीं देती। बातें कैसी कर रही हो तुम! हम वही चन्दर हैं न!”
“हाँ, वही चन्दर हो! और तभी तो! इस सारी दुनिया में तुम्हीं एक रह गये हो मुझे फोटो दिखाकर पसन्द कराने को।” सुधा सिसक-सिसककर रोने लगी-”पापा ने भी धोखा दे दिया। हमें पापा से यह उम्मीद नहीं थी।”
“पगली! कौन अपनी लड़की को हमेशा अपने पास रख पाया है!” चन्दर बोला।
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