लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता

गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

305 पाठक हैं

संवेदनशील प्रेमकथा।


“कैलाश मिश्रा को, वही बरेली वाले? उन्होंने हमें खत लिखा था उसमें तुम्हें प्रणाम लिखा था।” चन्दर बोला।

“नहीं, खत-वत नहीं लिखते। उन्हें एक दफे बुलाओ तो यहाँ।”

“हाँ, बुलाएँगे अब महीने-दो महीने बाद, तब तुमसे खूब परिचय करा देंगे और तुम्हें उसकी पार्टी में भी भरती करा देंगे।” चन्दर ने कहा।

“क्या? हम मजाक नहीं करते? हम सचमुच समाजवादी दल में शामिल होंगे।” सुधा बोली, “अब हम सोचते हैं कुछ काम करना चाहिए, बहुत खेल-कूद लिये, बचपन निभा लिया।”

“उन्होंने अपना चित्र भेजा है। देखोगी?” चन्दर ने जेब में हाथ डालते हुए पूछा।

“कहाँ?” सुधा ने बहुत उत्सुकता से पूछा, “निकालो देखें।”

“पहले बताओ, हमें क्या इनाम दोगी? बहुत मुश्किल से भेजा उन्होंने चित्र!” चन्दर ने कहा।

“इनाम देंगे इन्हें!” सुधा बोली और झट से झपटकर चित्र छीन लिया।

“अरे, छू लिया चौके में से?” बिनती ने दबी जबान से कहा।

सुधा ने थाली छोड़ दी। अब छू गयी थी वह; अब खा नहीं सकती थी।

“अच्छी फोटो देखी दीदी। सामने की थाली छूट गयी!” बिनती ने कहा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book