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घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

लेखनी का घुमक्कड़ी से कितना संबंध है, कितनी सहायता वहाँ से लेखनी को मिल सकती है, इसका दिग्दर्शन हमने ऊपर करा दिया। लेखनी की भाँति ही तूलिका और छिन्नी भी घुमक्कड़ी के संपर्क से चमक उठती है। तूलिका को घुमक्कड़ी कितना चमका सकती है, इसका एक उदाहरण रूसी चित्रकार निकोलस रोयरिक थे। हिमालय हमारा है, यह कहकर भारतीय गर्व करते हैं, लेकिन इस देवात्मा नगाधिराज के रूप को अंकित करने में रोयरिक की तूलिका ने जितनी सफलता पाई, उसका शतांश भी किसी ने नहीं कर दिखाया। रोयरिक की तूलिका रूस में बैठे इस चमत्कार को नहीं दिखला सकती थी। यह वर्षों की घुमक्कड़-चर्या थी, जिसने रोयरिक को इस तरह सफल बनाया। रूस के एक दूसरे चित्रकार ने पिछली शताब्दी में “जनता में ईसा” नामक एक चित्र बनाने में 25 साल लगा दिए। वह चित्र अद्भुत है। साधारण बुद्धि का आदमी भी उसके सामने खड़ा होने पर अनुभव करने लगता है, कि वह किसी अद्वितीय कृति के सामने खड़ा है। इस चित्र के बनाने के लिए चित्रकार ने कई साल ईसा की जन्मभूमि फिलस्तीन में बिताए। वहाँ के दृश्यों तथा व्यक्तियों के नाना प्रकार के रेखाचित्र और वर्णचित्र बनाए, अंत में उन सबको मिलाकर इस महान चित्र का उसने निर्माण किया। यह भी तूलिका और घुमक्कड़ी के सुंदर संबंध को बतलाया है।

छिन्नी क्या, वास्तु व कला के सभी अंगों में घुमक्कड़ी का प्रभाव देखा जाता है। कलाकार की छिन्नी एक देश से दूसरे देश में, यहाँ तक कि एक द्वीप से दूसरे द्वीप में छलाँग मारती रही है। हमारे देश की गंधार-कला क्या है? ऐसी ही घुमक्कड़ी और छिन्नी के सुंदर संबंध का परिणाम है। जावा के बरोबुदुर, कंबोज के अंकोरवात और तुंगह्वान की सहस्र-बुद्ध गुफाओं का निर्माण करने वाली छिन्नियाँ उसी स्थान में नहीं बनीं, बल्कि दूर-दूर से चलकर वहाँ घुमक्कड़ी के प्रभाव ने मूलस्थान की कला का निर्जीव नमूना न रख उसे और चमका दिया। आज भी हमारा घुमक्कड़ अपनी छिन्नी लेकर विश्व में कहीं भी निराबाध घूम सकता है।

घुमक्कड़ी लेखक और कलाकार के लिए धर्म-विजय का प्रयाण है, वह कला-विजय का प्रयाण है, और साहित्य़-विजय का भी। वस्तुत: घुमक्कड़ी को साधारण बात नहीं समझनी चाहिए, यह सत्य की खोज के लिए, कला के निर्माण के लिए, सद्भावनाओं के प्रसार के लिए महान दिग्विजय है!

 

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