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घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

धर्मों के संबंध में घुमक्कड़ का क्या भाव होना चाहिए, यह ऊपर के कथन से स्पष्ट हो गया होगा। घुमक्कड़ी व्रत और संकीर्ण सांप्रदायिकता एक साथ नहीं चल सकती। प्रथम श्रेणी के घुमक्कड़ को हम श्रेष्ठ़ पुरुष मानते हैं। वह मानव-मानव में संकीर्ण भेदभाव को नहीं पसंद करता। सभी धर्मों ने मानवता की जो अमूल्य सेवाएँ भिन्न -भिन्न क्षेत्रों में की हैं, उसकी वह कदर करता है, यद्यपि धर्मांधों को वह क्षमा नहीं कर सकता। सभी धर्मों ने केवल देववाद और पूजा-पाखंड तक ही अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं समझी। उन्होंने अपने-अपने कार्यक्षेत्र में उच्च साहित्य का सृजन किया, उच्च कला का निर्माण किया, वहाँ के लोगों के मानसिक विकास के तल को ऊँचा किया, साथ ही आर्थिक साधनों को भी उन्नत बनाने में सहायता की। यही सेवाएँ हैं, जिनके कारण तत्तद्-देशों में अपने-अपने धर्म के प्रति विशेष सद्भाव और प्रेम देखा जाता है, तथा कोई अपने ऐसे सेवक धर्म को सहसा छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता। जिस तरह धर्मों ने सारे देश और जाति की सेवा की है, उसी तरह उसने घुमक्कड़ी आदर्श के विकास और विस्तार में भी भाग लिया है। इसलिए धर्मों की सारी निर्दोष भावनाओं और प्रवृत्तियों के प्रति घुमक्कड़ की सहानुभूति होती है। हो सकता है, घुमक्कड़ का किसी एक धर्म के प्रति अधिक सम्मान हो, किंतु अनेक बार घुमक्कड़ को सभी रूपों में देखा जा सकता है। इसे सिद्धांतहीनता नहीं कहा जा सकता। सिद्धांतहीनता तो तब हो, जब घुमक्कड़ अपने उक्त सद्भाव को छिपाना चाहें।

लेकिन आजकल ऐसे भी घुमक्कड़ मिल सकते हैं जो धर्म से बिलकुल संबंध नहीं रखते। ऐसा घुमक्कड़ बुरा नहीं कहा जा सकता, बल्कि आजकल तो कितने ही प्रथम श्रेणी के घुमक्कड़ इसी तरह के विचार के होते हैं। विस्तृत भूखंड की यात्रा करने और शताब्दियों के अपरिमित ज्ञान के आलोड़न करने पर वह धर्मों से संन्यास ले सकते हैं, तो भी उच्चतम घुमक्कड़ी आदर्श को जो अपने जीवन का अंग बनाते हैं, वह सबसे अधिक अपने घुमक्कड़ बंधुओं और सारी मानवता के हितैषी होते हैं। समय पड़ने पर नास्तिक घुमक्कड़ अपने विचारों को स्पष्ट करते नहीं हिचकिचाता, किंतु साथ ही सच्चे भाव से धर्म में श्रद्धा रखने वाले किसी अपने घुमक्कड़ बंधु के दिल को वह कठोर वाग्वाण का लक्ष्य भी नहीं बना सकता। उसका लक्ष्य है, सबको मित्रतापूर्ण दृष्टि से देखना।

 

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