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घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण


स्त्री घुमक्कड़

 

घुमक्कड़-धर्म सार्वदैशिक विश्वव्यापी धर्म है। इस पंथ में किसी के आने की मनाही नहीं है, इसलिए यदि देश की तरुणियाँ भी घुमक्कड़ बनने की इच्छा रखें, तो यह खुशी की बात है। स्त्री होने से वह साहसहीन है, उसमें अज्ञात दिशाओं और देशों में विचरने के संकल्पों का अभाव है - ऐसी बात नहीं है। जहाँ स्त्रियों को अधिक दासता की बेड़ी में जकड़ा नहीं गया, वहाँ की स्त्रियाँ साहस-यात्राओं से बाज नहीं आतीं। अमेरिकन और यूरोपीय स्त्रियों का पुरुषों की तरह स्वतंत्र हो देश-विदेश में घूमना अनहोनी सी बात नहीं है। यूरोप की जातियाँ शिक्षा और संस्कृति में बहुत आगे हैं, यह कहकर बात को टाला नहीं जा सकता। अगर वे लोग आगे बढ़े हैं, तो हमें भी उनसे पीछे नहीं रहना है। लेकिन एशिया में भी साहसी यात्रिणियों का अभाव नहीं है। 1934 की बात है, मैं अपनी दूसरी तिब्बत-यात्रा में ल्हासा से दक्षिण की ओर लौट रहा था। ब्रह्मपुत्र पार करके पहले डांडे को लाँघकर एक गाँव में पहुँचा। थोड़ी देर बाद दो तरुणियाँ वहाँ पहुँची। तिब्बत के डांडे बहुत खतरनाक होते हैं, डाकू वहाँ मुसाफिरों की ताक में बैठे रहते हैं। तरुणियाँ बिना किसी भय के डांडा पार करके आईं। उनके बारे में शायद कुछ मालूम नहीं होता, किंतु जब गाँव के एक घर में जाने लगीं, तो कुत्ते ने एक के पैर में काट खाया। वह दवा लेने हमारे पास आईं, उसी वक्त उनकी कथा मालूम हुई। वह किसी पास के इलाके से नहीं, बल्कि बहुत दूर चीन के कन्सू प्रदेश में ह्वांग-हो नदी के पास अपने जन्मस्थान से आई थीं। दोनों की आयु पच्चीस साल से अधिक नहीं रही होगी। यदि साफ सफेद कपड़े पहना दिये जाते, तो कोई भी उन्हें चीन की रानी कहने के लिए तैयार हो जाता। इस आयु और बहुत-कुछ रूपवती होने पर भी वह ह्वांग-हो के तट से चढ़कर भारत की सीमा से सात-आठ दिन के रास्ते पर पहुँची थीं। अभी यात्रा समाप्त नहीं हुई थी। भारत को वह बहुत दूर का देश समझती थीं, नहीं तो उसे भी अपनी यात्रा में शामिल करने की उत्सुक होतीं। पश्चिम में उन्हें मानसरोवर तक और नेपाल में दर्शन करने तो अवश्य जाना था। वह शिक्षिता नहीं थीं, न अपनी यात्रा को उन्होंने असाधारण समझा था। यह अम्दोश तरुणियाँ कितनी साहसी थीं? उनको देखने के बाद मुझे ख्याल आया, कि हमारी तरुणियाँ भी घुमक्कड़ी अच्छी तरह कर सकती हैं।

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