लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> घुमक्कड़ शास्त्र

घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

322 पाठक हैं

यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

सिरकीवाले के अर्थशास्त्र को समझना किसी दिमागदार के लिए भी मुश्किल है। एक-एक सिरकी में पाँच-पाँच छ-छ व्यक्तियों का परिवार है - सिरकीवाले ब्याह होते ही बाप से अपनी सिरकी अलग कर लेते हैं, तो भी कैसे छ के परिवार का गुजारा होता है? उनकी आवश्याकताएँ बहुत कम हैं, इसमें संदेह नहीं; किंतु पेट के लिए दो हजार कलोरी आहार तो चाहिए, जिसमें वह चल फिर सके, हाथ से काम कर सके। उसकी जीविका के साधनों में किसी के पास एक बंदर और एक बंदरी है, तो किसी के पास बंदर और बकरा, और किसी के पास भालू या साँप। कुछ बाँस या बेंत की टोकरी बनाकर बेचने के नाम पर भीख माँगते हैं, तो कुछ ने नट का काम सँभाला है। नट पहले नाटक-अभिनय करने वालों को कहा जाता था, लेकिन हमारे यह नट कोई नाटक करते दिखलाई नहीं पड़ते, हाँ, कसरत या व्यायाम की कलाबाजी जरूर दिखलाते हैं। बरसात में किसी-किसी गाँव में यदि नट एक-दो महीने के लिए ठहर जाते हैं, तो वहाँ अखाड़ा तैयार हो जाता है। गाँव के नौजवान खलीफा से कुश्ती लड़ना सीखते हैं। पहले गाँवों की आबादी कम थी, गाय-भैसें बहुत पाली जाती थीं, क्योंकि जंगल चारों ओर था, उस समय नौजवान अखाड़िये का बाप खलीफा को एक भैंस विदाई दे देता था, लेकिन आज हजार रुपया की भैंस देने को तैयार है?

उनकी स्त्रियाँ गोदना गोदती हैं। पहले गोदने को सौभाग्य का चिह्न समझा जाता था, अब तो जान पड़ता है वह कुछ दिनों में छूट जायगा। गोदना गोदाने के लिए उन्हें अनाज मिल जाता था, आज अनाज की जिस तरह की महँगाई है, उससे जान पड़ता है कितने ही गृहस्थ अनाज की जगह पैसा देना अधिक पसंद करेंगे।

ख्याल कीजिए, सात दिनों से बदली चली आई है। घर की खर्ची खत्म हो चुकी है। सिरकीवाला मना रहा है - हे दैव! थोड़ा बरसना बंद करो कि मैं बंदर-बंदरियों को बाहर ले जाऊँ और पाँच मुँह के अन्न-दाना का उपाय करूँ। सचमुच बूँदाबादी कम हुई नहीं कि मदारी अपने बंदर-बं‍दरियों को लेकर डमरू गलियों या सड़कों में निकल पड़ा। तमाशा बार-बार देखा होने पर भी लोग फिर उसे देखने के लिए तैयार हो जाते हैं। लोगों के लिए मनोरंजन का और कोई साधन नहीं है। तमाशे के बदले में कहीं पैसा, कहीं अन्न, कहीं पुराना कपड़ा हाथ आ जाता है। अँधेरा होते-होते मदारी अपनी सिरकी में पहुँचता है। यदि हो सके तो सिरकी की देखभाल किसी बुढ़िया को देकर स्त्रियाँ भी निकल जाती हैं। शाम को जमीन में खोदे चूल्हे में ईंधन जला दिया जाता है, सिरकी के बाँस से लटकती हंडिया उतार कर चढ़ा दी जाती है, फिर सबसे बुरे तरफ का अन्न डालकर उसे भोजन के रूप में तैयार किया जाने लगता है। उसकी गंध नाक में पड़ते ही बच्चों की जीभ से पानी टपकता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai