ई-पुस्तकें >> घुमक्कड़ शास्त्र घुमक्कड़ शास्त्रराहुल सांकृत्यायन
|
7 पाठकों को प्रिय 322 पाठक हैं |
यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण
शरीर को मजबूत करने के लिए और भी कसरत और व्यायाम किए जा सकते हैं, लेकिन घुमक्कड़ को घूम-घूमकर कुश्ती या दंगल नहीं लड़ना है। मजबूत शरीर स्वस्थ शरीर होता है, इसलिए वह तरह-तरह के व्यायाम से शरीर को मजबूत कर सकता है। लेकिन जो बात सबसे अधिक सहायक हो सकती है, वह है मन-सवामन का बोझ पीठ पर रख कर दस-पाँच मील जाना और कुदाल लेकर एक साँस में एक-दो क्यारी गोड़ डालना। यह दोनों बातें दो-चार दिन के अभ्यास से नहीं हो सकतीं, इनमें कुछ महीने लगते हैं। अभ्यास हो जाने पर किसी देश में चले जाने पर अपने शारीरिक-कार्य द्वारा आदमी दूसरे के ऊपर भार बनने से बच सकता है। मान लीजिए अपने घुमक्कड़ी-जीवन में आप ट्रिनीडाड और गायना निकल गये - इन दोनों स्थानों में लाखों भारतीय जाकर बस गये हैं - वहाँ से आप चिली या इक्वेडोर में पहुँच सकते हैं। आप चाहे और कोई हुनर न भी जानते हों, या जानने पर भी वहाँ उसका महत्व न हो, तो किसी गाँव में पहुँचकर किसी किसान के काम में हाथ बँटा सकते हैं। फिर उस किसान के आप महीने-भर भी मेहमान रहना चाहें, तो वह प्रसन्नता से रखेगा। आप उच्च श्रेणी के घुमक्कड़ हैं, इसलिए आपमें अपने शारीरिक काम के लिए वेतन का लालच नहीं होगा। आप देश-देश की यात्रा के तजुर्बो की बातें बतलाएँगे, लोगों में घुल-मिलकर उनके खेतों में काम करेंगे। यह ऐसी चीज है, जो आपको गृहपति का आत्मीय बना देगी। यह भी स्मरण रखना चाहिए, कि अब दुनिया में शारीरिक श्रम का मूल्य बढ़ता ही जा रहा है। हमारे ही देश में पिछड़े दस वर्षों के भीतर शरीर से काम करने वालों का वेतन कई गुना बढ़ गया है, यह आप किसी भी गाँव में जाकर जान सकते हैं। फिर दुनिया का कौन सा देश है, जहाँ पर जाकर समय-समय पर काम करके घुमक्कड़ जीवन-यापन का इंतजाम नहीं कर सकता?
शारीरिक परिश्रम, यही नहीं कि आपके लिए जेब में पड़े नोट का काम देता है, बल्कि वह आज ही मिले आदमी को घनिष्ठ बना देता है। मेरे एक मित्र जर्मनी में सत्रह वर्ष रहकर हाल ही में भारत लौटे। वहाँ दो विश्वविद्यालयों से दो-दो विषयों पर उन्हें डाक्टर की उपाधि मिली, बर्लिन जैसे महान विश्व्विद्यालय में भारतीय दर्शन के प्रोफेसर रहे। द्वितीय महायुद्ध के बाद पराजित जर्मनी में ऐसी अवस्था आई जबकि उनकी विद्या किसी काम की नहीं थी। वह एक गाँव में जाकर एक किसान के गायों-घोड़ों को चराते और खेतों में काम करते दो साल तक रहे। किसान, उसकी स्त्री, उसकी लड़कियाँ, सारा घर हमारे मित्र को अपने परिवार का व्यक्ति समझता था और चाहता था कि वह वहीं बने रहें। उस किसान को बड़ी प्रसन्नता होती, यदि हमारे दोस्त ने उसकी सुवर्णकेशी तरुण कन्या से परिणय करना स्वीकार कर लिया होता। मैं हरेक घुमक्कड़ होने वाले तरुण से कहूँगा, कि यद्यपि स्नेह और प्रेम बुरी चीज नहीं है, लेकिन जंगम से स्थावर बनना बहुत बुरा है। इसलिए इस तरह दिल नहीं दे बैठना चाहिए, कि आदमी खूँटे में बँधा बैल बन जाय। अस्तु! इससे यह तो साफ ही है कि आजकल की दुनिया में स्वस्थ शरीर के होते शरीर से हर तरह का परिश्रम करने का अभ्यास घुमक्कड़ के लिए बड़े लाभ की चीज है।
|