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घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

जब अपने संकल्प कर लिया है, तो अगले चार-पाँच साल में अपने आसपास के पुस्तकालयों या अपने स्कूल की लायब्रेरी में जितनी भी यात्रा-पुस्तकें और जीवनियाँ मिलती हों, उन्हें जरूर पड़ा होगा। अच्छे उपन्यास-कहानी घुमक्कड़ की प्रिय वस्तु हैं, लेकिन उसकी सबसे प्रिय वस्तु है यात्राएँ। आजकल के भारतीय यात्रियों की पुस्तकें आपने अवश्य पढ़ी होंगी, फिर पुराने-नए सभी देशी-विदेशी यात्रियों की यात्राएँ आपके लिए बहुत रुचिकर प्रतीत हुई होंगी। प्राचीन और आधुनिक देशी-विदेशी सभी घुमक्कड़ एक परिवार के लगे भाई हैं। उनके ज्ञान को पहले अर्जित कर लेना तरुण के लिए बहुत बड़ा संबल है। मैट्रिक होते-होते आदमी को यात्रा-संबंधी डेढ़-दो सौ पुस्तकें तो अवश्य पढ़ डालनी चाहिए।

घुमक्कड़ को भिन्न-भिन्न भाषाओं का ज्ञान अपनी यात्रा में प्राप्त करना पड़ता है। कुछ भाषाएँ तो 16 वर्ष की उम्र तक भी पढ़ी जा सकती है। हिंदी वालों को बँगला और गुजरती का पढ़ना दो-महीनों की बात है। अंग्रेजी अभी हमारे विद्यालयों में अनिवार्य रूप से पढ़ाई जा रही है, इसलिए अंग्रेजी पुस्तकें पढ़ने का सुभीता भी मौजूद है। लेकिन दस-पंद्रह वर्ष बाद यह सुभीता नहीं रहेगा, क्योंकि अंग्रेजी-संरक्षक श्वेत-केश वृद्ध नेता तब तक परलोक सिधार गये होंगे। लेकिन उस समय भी घुमक्कड़ अपने को अंग्रेजी या दूसरी भाषा पढ़ने से मुक्त नहीं रख सकता। पृथ्वी के चारों कोनों में भाषा की दिक्कंत के बिना घूमने के लिए अंग्रेजी, रूसी, चीनी और फ्रेंच इन चार भाषाओं का कामचलाऊ ज्ञान आवश्यक है, नहीं तो जिस भाषा का ज्ञान नहीं रहेगा, उस देश की यात्रा अधिक आनंददायक और शिक्षाप्रद नहीं हो सकेगी।

मैट्रिक के बाद अपने आगे की तैयारी के लिए चार साल यात्रा को स्थगित रखकर आदमी को क्या करना चाहिए? घुमक्कड़ के लिए भूगोल और नक्शे का ज्ञान अत्यंत आवश्यक है। मैट्रिक तक भूगोल और नक्शे का जो ज्ञान हुआ है, वह पर्याप्त नहीं है। आपको नई पुरानी कोई भी यात्रा-पुस्तक को पढ़ते समय नक्शे को देखते रहना चाहिए। केवल नक्शा देखना पर्याप्त नहीं है, क्योंकि उसमें उन्नतांशश और ग्लेशियर आदि का चिह्न होने पर भी उससे आपको ठीक पता नहीं लगेगा कि जाड़ों में वहाँ की भूमि कैसी रहती होगी। नक्शे में लेनिनग्राड को देखने वाला नहीं समझेगा कि वहाँ जाड़ों में तापमान हिमबिंदु से 45-50 डिग्री (-24,-30 सेंटीग्रेड) तक गिर जाता है। हिमबिंदु से 45-50 डिग्री नीचे जाने का भी भूगोल की साधारण पुस्तकों से अनुमान नहीं हो सकता। हमारे पाठक जो हिमालय के 6000 फुट से ऊपर की जगहों में जाड़ों में नहीं गये, हिमबिंदु का भी अनुमान नहीं कर सकते। यदि कुछ मिनट तक अपने हाथों में किलो-भर बर्फ का डला रखने की कोशिश करें, तो आप उसका कुछ कुछ अनुमान कर सकते हैं। लेकिन घुमक्कड़ तरुण को घर से निकलने से पहले भिन्न जलवायु की छोटी-मोटी यात्रा करके देख लेना चाहिए। यदि आप जनवरी में शिमला और नैनीताल को देख आए हैं, तो आप स्वेकन-चंग या फाहियान की तुषार-देश की यात्राओं के वर्णन का साक्षात्कार कर सकते हैं, तभी आप लेनिनग्राड की हिमबिंदु से 45-50 डिग्री नीचे की सर्दी का भी कुछ अनुमान कर सकते हैं। इस प्रकार तरुण यह जानकर प्रसन्न होंगे कि मैं तैयारी के समय में भी छोटी-छोटी यात्राओं के करने का जोर से समर्थन करता हूँ।

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