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घाट का पत्थर

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :321
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9564
आईएसबीएन :9781613013137

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लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।

2

हवा के तीव्र झोंके सांय-सांय कर रहे थे। रात के दस बजने का समय था। आने वाली ट्रेन की गड़गड़ाहट सुनाई दी। दीपक जल्दी से संभला। मुनीमजी और हरिया ने सामान सिर पर उठा लिया। थोड़ी ही देर में गाड़ी प्लेटफार्म पर आकर रुकी। भीड़ से भरे डिब्बों को छोड़ता हुआ दीपक एक सैकिंड क्लास के डिब्बे में प्रविष्ट हुआ और जल्दी से सामान जमा दिया।

इंजन ने सीटी दी। हरिया और मुनीमजी जल्दी से नीचे उतर गए और गाड़ी चल दी।

‘पिताजी का ध्यान रखना।’ उसने चलती ट्रेन से आवाज दी और दरवाजा बंद करते ही कमरे का निरीक्षण करना आरंभ किया। छः सीटें थीं, परंतु सब की सब भरी हुई। प्रत्येक पर कोई न कोई लेटा हुआ नींद के मजे ले रहा था, परंतु दरवाजे के समीप वाली सीट पर सुंदर लड़की लेटी हुई फिल्मी मैगजीन पढ़ रही थी। दीपक ने सोचा कि बैठने के लिए थोड़ी जगह मांगे परंतु साहस न कर सका और इसी प्रकार खड़ा रहा। लड़की ने उसे तीखी निगाह से देखा और सिर झुका लिया। उसके होंठों पर एक भावपूर्ण मुस्कराहट थी।

ट्रेन अपनी पूरी चाल पकड़ चुकी थी। अभी तक किसी यात्री की आंख भी न खुली थी कि दीपक उससे थोड़ी-सी जगह बैठने को मांग लेता। रात का समय था। किसी से जबरदस्ती भी तो नहीं हो सकती थी। उसने सोचा कि अपना बक्स जमाकर उस पर बैठ जाए। उसने अपना बिस्तर बक्स पर से सरकाया। लड़की उसे कनखियों से देख रही थी। उसे इस प्रकार देखकर बोली-

‘आप यहां बैठ सकते हैं।’ और यह कहकर उसने अपनी टांगें समेट लीं।

‘धन्यवाद!’ कहकर दीपक ने सीट के किनारे बैठकर मन में सोचा, यदि पहले ही प्रार्थना कर ली होती तो टांगों को इतना कष्ट न होता।

हवा तेजी से चल रही थी। उस बाला की साड़ी का पल्ला हवा में उड़-उड़कर उसके चेहरे पर आ पड़ता जिस प्रकार चांद के आगे छोटी सी बदली। दीपक ने पहली बार उसे ध्यान से देखा। वह सुंदर थी। उसके निखरे केश हवा में लहराते बहुत ही भले जान पड़ते थे। दीपक छिपी-छिपी निगाहों से उसे देख लेता।

गाड़ी बहुत दूर निकल गई। दीपक चाहता था कि सारी रात इसी प्रकार बैठा उस सुंदर मुखड़े को निहारता रहे। उसने बहुत चाहा था कि किसी प्रकार बातचीत का कोई क्रम आरंभ हो जाए तो समय अच्छा कटे, परंतु यह हो किस प्रकार? वे तो एक-दूसरे के नाम तक से अपरिचित थे। कुछ देर दोनों इसी प्रकार चुपचाप बैठे रहे।

‘देखिए, यदि कष्ट न हो तो सामने रखी सुराही में से एक गिलास पानी डाल दें।’ लड़की ने एक बिल्लौरी गिलास बढ़ाते हुए कहा।

दीपक पहले तो चौंक पड़ा, परंतु फिर उसने संभलते हुए गिलास पकड़ लिया। उसके हाथ कांप रहे थे।

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