ई-पुस्तकें >> घाट का पत्थर घाट का पत्थरगुलशन नन्दा
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लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।
‘परंतु अब मैं तुमसे कुछ छिपाकर रखना नहीं चाहती। तुम विश्वास दिलाओ कि अब मेरा ख्याल छोड़ दोगे।’
‘प्रयत्न करूंगा, विश्वास नहीं दिला सकता।’
यह कहकर दीपक अंदर चला गया। लिली भी उसके पीछे-पीछे गई।
‘तुम्हारी आंखों में आंसू कैसे?’उसने दीपक को रोते देखकर कहा।
‘अभी हृदय पतथर का नहीं बना। प्रयत्न कर रहा हूं।’
‘तुम तो बालकों की भांति रोने लग गए।’ लिली ने अपने रुमाल से उसके आंसू पोंछे।
‘तुम जाओ लिली, मुझे अकेला छोड़ दो। मैं प्रयत्न करूंगा कि जो कुछ हुआ है उसे शीघ्र भूल जाऊं।’
‘तुम भी साथ चलो न, कुछ देर खेलकर लौट आएंगे।’
‘मेरी इच्छा नहीं, तुम जाओ।’
‘मेरी बात का बुरा तो नहीं माना तुमने।’
‘बुरा क्यों मानने लगा और फिर तुम्हारी बातों का?’
‘अच्छा दीपक!’ लिली ने दीपक के हाथ को अपने हाथ में दबाते हुए कहा और बाहर चली गई।
दीपक बहुत उदास था। आज उसकी रही-सही आशा भी उसे छोड़ गई। क्या यह सब सत्य था? उसने प्रेम किया है अपने को खोकर... परंतु लिली का व्यवहार? कभी स्वप्न में भी वह नहीं सोचता था कि लिली उसके साथ इस प्रकार का व्यवहार करेगी।
इसी प्रकार विचारों में संध्या बीत गई और वह कमरे में ही लेटा हुआ इस गुत्थी को सुलझाने का प्रयत्न कर रहा था कि किसी ने उसका दरवाजा खटखटाया....।
‘कौन है?’
‘मैं माला।’
‘दरवाजा खुला है, अंदर आ जाओ।’
माला ने दरवाजा खोला और अंदर आ गई। दीपक उठ बैठा और बोला, ‘आओ माला।’
‘लिली कहां है?’
‘बैडमिन्टन खेलने गई है।’
‘अच्छा, क्या तुम सो रहे थे?’
‘नहीं तो।’
‘आंखों से ऐसा जान पड़ता है कि नींद से उठे हो या रो रहे थे।’
अभी आया हूं, थका हुआ था। चलो ड्राइंगरूम में चलकर बैठें।
दोनों उठकर ड्राइंगरूम की ओर चल दिए।
दीपक, तुम कुछ छिपा रहे हो। मेरे आने से पहले तुम अवश्य रो रहे थे।
‘नहीं, नहीं ऐसी कोई बात नहीं। मैं अभी हाथ-मुंह धोकर आता हूं।’
यह कहकर दीपक गुसलखाने में चला गया और माला ड्राइंगरूम में बैठी उसकी प्रतीक्षा करने लगी। थोड़ी ही देर में दीपक मुंह-हाथ धोकर माला के पास आ गया और दोनों एक साथ चाय पीने लगे। माला ने पूछा, ‘आज चाय इतनी देर से क्यों? लिली तो कहती थी, आप दोनों शाम की चाय एक साथ पीते हैं। झगड़ा हो गया है?’
‘नहीं तो, इसमें झगड़े की क्या बात है? आज मैं कुछ देर से आया। वह पीकर जा चुकी थी।’
‘तुम्हें यह कैसे पता चला कि वह बैडमिंटन खेलने गई है?’
‘रैकेट उसके हाथ में था।’
‘अभी तो तुमने कहा कि वह तुम्हारे आने से पहले ही जा चुकी थी।’
‘मेरा मतलब.... वह जा रही थी।’
‘हूं। कुछ दाल में काला अवश्य दिखाई देता है। दीपक, मुझसे क्यों छिपाते हो, हो सकता है कि मैं तुम्हारी कुछ सहायता कर सकूं।’
‘अब रखा ही क्या है?’
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