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घाट का पत्थर

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :321
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9564
आईएसबीएन :9781613013137

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लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।

वह देखता क्या है कि लिली एक युवक के बाहुपाश में बंधी खड़ी है। रोशनी पड़ते ही लिली संभली। वह घबार-सी गई। दीपक ने देखा वह युवक सागर था। दीपक का अंग-प्रत्यंग क्रोध से फड़कने लगा, पर वह शांत रहा।

‘कौन? दी. प. क?’

‘लिली, डैडी बुला रहे हैं।’ दीपक यह कहकर वापस लौट पड़ा। लिली उसके पीछे-पीछे आ रही थी। वह कांप रही थी। इस समय डैडी ने क्यों बुलाया है? क्या वह यह सब जान गए हैं?

दोनों बरामदे में पहुंच गए। दीपक सीढ़ियों पर रुक गया। लिली ने समीप पहुंचते हुए धीरे-से कहा, ‘कहां है डैडी?’

‘अपने कमरे में।’ दीपक का स्वर गंभीर था।

‘क्यों? क्या बात है?’ लिली डरते-डरते बोली।

‘उनके पेट में बहुत दर्द है। गरम पानी की बोतल मंगवाई है।’

‘तुम चलो, मैं आती हूं।’ लिली यह कहकर बाहर गई और खिड़की के रास्ते से अंदर जाकर अपने तकिए के नीचे से तालियां उठाई और शीघ्रता से डैडी के पास पहुंची।

‘क्यों, डैडी क्या बात है?’

‘पेट में बहुत दर्द है। घोड़े बेचकर सो गई थी जो जगाने में इतनी देर लगी?’

‘ऐसे ही जरा नींद आ गई थी।’ उसने कनखियों से दीपक की ओर देखा। वह क्रोध से लाल हो रहा था। लिली ने सामने का कमरा खोला और बोतल निकालकर दीपक के हाथ में दे दी। लिली रसोई से गरम पानी का बर्तन ले आई। दीपक ने बोतल का कार्क खोला और बोतल आगे कर दी। लिली ने पानी बोतल में डालना आरंभ किया। उसके हाथ कांप रहे थे। उबलता हुआ दीपक के हाथ पर जा पड़ा और बोतल उसके हाथ से छूटकर फर्श पर गिर गई।

‘होश में हो या सो रही हो?’ सेठ साहब ऊंचे स्वर में बोले।

‘जी, कोई बात नहीं।’ दीपक ने कहा और बोतल फिर से उठाकर हाथ में ले ली। लिली ने पानी डाला और बोतल का कार्क बंद करके दीपक ने बोतल सेठ साहब के हवाले की। सेठ साहब ने उसे लेकर पेट पर रख लिया।

‘अब तबियत कैसी है?’ थोड़ी देर बाद दीपक ने पूछा।

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