लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> घाट का पत्थर

घाट का पत्थर

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :321
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9564
आईएसबीएन :9781613013137

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

239 पाठक हैं

लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।

6

संध्या का समय था। लिली बाहर बरामदे में बैठी कॉलेज का काम कर रही थी। एक साइकिल बरामदे के सामने रुकी। परंतु लिली अपने काम में इतनी व्यस्त थी कि उसने उस ओर ध्यान ही न दिया। वह उसी प्रकार सिर नीचा किए बैठी लिखती रही। अनायास आगन्तुक की आवाज सुनकर वह चौंक गई।

‘हुजूर की सेवा में नमस्कार करती हूं।’

स्वर माला का था। लिली ने सिर उठाकर देखा और बोली, ‘नमस्कार की बच्ची। इतने दिन से कहां थी? जब से पूना से लौटकर आई हो, सूरत नहीं दिखाई।’

‘क्या करूं, पूना से लौटी तो बुआ बीमार थीं। कॉलेज से छुट्टी ले रखी है। आज कुछ तबियत ठीक थी तो सोचा कि अपने प्राण-प्यारों से मिल लिया जाए।’

‘अच्छा पहले तो बैठ जाओ।’ लिली ने पुस्तक बंद करते हुए कहा। माला पास ही बिछी कुर्सी पर बैठ गई।

‘हां, अब कहो, क्या मंगवाऊं, चाय या शरबत?’

‘इस गरमी में साइकिल चलाकर आई हूं और ऊपर से चाय!’

‘तो शरबत ही सही... किशन!’ लिली ने नौकर को आवाज देते हुए कहा, ‘और कोई सेवा?’

‘तुम सेवा करोगी? कोई सेवा हो तो मुझसे कहो।’

‘न बाबा, तुम्हारी की हुई सेवा के तो अहसान अभी तक भूले नहीं!’

‘कौन-सी?’

‘जो दीपक को स्टेशन पहुंचाते समय की थी।’

‘ओह! कहो दीपक का पारा अभी तक उतरा है या नहीं?’

‘मुझे तो उतरा हुआ दिखाई नहीं देता।’

‘क्यों, क्या बात है?’

‘उसने तो मुझसे बोलना ही छोड़ दिया है। मेरे तैयार होने से पहले ही फैक्टरी चला जाता है और संध्या को भी देर से लौटता है। पहले तो इधर मैं कॉलेज से आई उधर वह आ पहुंचा।’

‘लिली, क्या तुम्हें यह मालूम न था कि वह तुमसे प्रेम करता है?’

‘जानती क्यों नहीं थी।’

फिर तुमने उसे इस प्रकार अंधेरे में क्यों रखा? किसी दिन साफ-साफ कह देती कि तू सागर को पसंद करती है।

‘तू नहीं जानती कि उसको साफ इंकार करना कितना कठिन है।’

‘तो क्या अब वह कठिनता दिन-प्रतिदिन सरल होती जा रही है?’

‘नहीं परंतु मैं करूं क्या?’

‘वह बुद्धिमान है। उसे किसी समय ठीक प्रकार से समझा दो। वह स्वयं ही तुम्हारा ध्यान छोड़ देगा।’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book