लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563
आईएसबीएन :9781613015872

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

184 पाठक हैं

आज…. प्रेम किया है हमने….


‘‘मामी! ऐसी बात नहीं है! मैं कोई हलवाई-अलवाई बनने नहीं जा रहा हूँ!‘‘ देव ने स्थिति संभाली।

‘‘.....वो लड़की पढी-लिखी है, देखने में सुन्दर है, बड़ा हुनर है उसके हाथों में! ऐसी कोई डिश नहीं जो उसे बनानी न आती हो!‘‘ देव ने अपना पक्ष मजबूत किया।

मामी ने सुना। पर फिर भी उन्हें आश्चर्य होता रहा। मैंने गौर किया....

‘‘...और तुम्हारे डैडी? वो तो करोड़पति हैं, वो कभी शादी के लिए तैयार नहीं होगे!‘‘ जैसे मामी ने तुरन्त ही हथियार डाल दिये, पूरी उम्मीद ही छोड़ दी।

‘‘हाँ! हम जानते हैं‘‘ देव को थोड़ी निराशा हुई मामी की ये बात सुनकर।

देव उदास हो गया।

‘‘....और क्या वो लड़की? वो भी तुम्हें पसन्द करती है?‘‘ मामी पे फिर पूछा।

‘‘मामी! मैं तो जबरदस्त कन्फ्यूज हूँ! पिछले कई दिनों से उसे समझने की कोशिश कर रहा हूँ, पर समझ नहीं पा रहा। पता नहीं ब्रह्मा ने उसे किन क्षणों में बनाया है?‘‘

’’एक बार तो बड़ी प्यारी लगती है.... मन करता है उसे लपक के पकड़ लूँ और झपक के उसके फूले-2 गालों पर किस कर लूँ, पर अगले ही पल बड़ी ड़रावनी लगती है जैसे कोई बीछी अभी छेद देगी, ... जैसे कोई मधुमक्खी अभी डंक मार देगी, ...जैसे कोई गाय अपने सींग मार देगी!‘‘ देव बोला आश्चर्य से।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय