ई-पुस्तकें >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘गंगा-देव! मैं जानती हूँ कि तुम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हो... तुम दोनों को टोकना मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा। पर... नाउन दोनों का इन्तजार कर रही है... तुम लोग जितनी चाहे बाते कर सकते हो... पर हल्दी लगवाते हुए’ गायत्री ने असमर्थता जतलाई।
दोनों को हल्दी लगाने की प्रक्रिया आरंभ हुई। वहीं गंगा के बाबू गंगासागर हलवाई ने रानीगंज के अन्य हलवाईयों को बुलाया शाम को होने वाली गंगा और देव की शादी की दावत में परोसे जाने वाले पकवान बनाने के लिए।
अब शाम हो गई थी। अब धीरे-धीरे अँधेरा हो रहा था। बिजली वाले ने डीजल से चलने वाले जेनरेटर को चला दिया।
‘देव! आपको गंगा की माँ बुला रही है!’ गायत्री छम-छम करती हुई ये संदेशा लेकर आई।
‘अम्मा! आपने मुझे बुलाया!’ देव गंगा की माँ रुकमणि के पास पहुँचा। बगल में सावित्री, गीता मामी, गंगासागर हलवाई और सभी लोग इकट्ठा थे सिर्फ गंगा वहाँ नहीं थी।
‘देव!....’ रुकमणि ने देव को बड़ी प्यार से पुकारा। देव ने सफेद रंग का पैजामा-कुर्ता, मुड़ी वाली जूतियाँ और उस पर लाल रंग का कढ़ाईदार मफलर पहन रखा था। मैंने नोटिस किया...
सभी लोग थोड़ा चुप-चुप से थे।
‘बेटवा! हमार बिटिया मा कौनो कमी नाईं है... खोब काम करत ही!... तूका सारी जिन्दगी खाना बनाई के खिलाई... तोहार गोड़वो दबोट दिया करी... पर ईका नीदं बहुत आवत है.. हमका डर है कि इ कहीं शादी के बिच्चे का सोय न जाये’
‘अच्छा!’ ये बात सुनकर देव के होश ही उड़ गये।
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