ई-पुस्तकें >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
वो एक मोटी सी.... भद्वी सी..... काले रंग की बदसूरत सी औरत थी। उसकी उँगलियां कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर बडी तेजी से चल रही थीं..... जैसे ब्रेड पर कोई चाकू से बड़ी तेजी से मक्खन लगाये। मैंने नोटिस किया ...
देव के दिल की धडकन अब और तेज हो गई। अब वो समय आ गया था, जब वो काउन्सलर देव को बतायेगी कि कहाँ पर देव को पूरे एक साल पढाई करनी है-
‘‘आपको मिला है…… शान्ती देवी डिग्री कालेज, रानीगंज‘‘ वो बोली।
देव को अचानक झटका सा लगा।
‘‘नहीं! नहीं! मैडम!‘‘.... हमें ये कालेज नहीं चाहिए!’ उसने तुरन्त ही मना कर दिया बल्कि हमें तो नन्दिनी नगर कालेज चाहिए.... वो जो नवाबगंज मे है‘‘ देव ने तुरन्त विरोध किया ।
‘‘देखिये सर!.... आपके फार्म में लिखा है कि आपके पास एनसीसी बी सर्टिफिकेट है.... पर वो आपने यहाँ जमा नहीं किया है.... इसलिए आपको ये कालेज मिला है... आपकी रैंक पाँच प्वाइंट कम हो गयी है!‘‘
‘‘मैडम मैं गल्ती से अपना सर्टिफिकेट घर पर भूल गया हूँ!‘‘ भुलक्कड देव ने उस औरत को बताया।
‘‘माफ करिये सर! हम आपकी कोई मदद नहीं कर सकते.... जब तक हम खुद ओरिजनल सर्टिफिकेट ना देख लें’ उसने पूरा मामला समझाया।
‘‘मैडम!‘‘ देव उसकी ओर झुका....
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