ई-पुस्तकें >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
असलियत में वो इस गाँव की धर्मगुरू थी जो विभिन्न प्रकार के जादू-टोने से गाँव के सभी लोगों का इलाज करती थी। ये आदिवासी मछुवारे पूरी तरह अशिक्षित थे। एक अक्षर का भी ज्ञान नहीं। ये लोग शायद ही कभी बीमार होने पर किसी डाक्टर के पास जाते हों। कभी कोई समस्या होने पर ये आदिवासी अपने पूर्वजों की आत्माओं को याद करते थे। उन्हें बुलाते थे।
आत्माएँ जो सन्तुष्ट व पवित्र थीं। आत्माएँ जो इस गाँव में निवास करने वाले लोगों की रक्षा करती थीं। आत्माएँ जिनका अपना वजूद था, जिनके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता था।
‘हमारे पूर्वजों की आत्माएँ! हियाँ ......आइके! ऐके जान बचाओ!’ उस बूड़ी औरत ने गंभीरतापूर्वक विभिन्न प्रकार की दुआए पढ़ीं, झाड़ फूंक की और आत्माओं को बुलावा भेजा।
मौसम जो कि बहुत शान्त था, सारे उपस्थित मछुवारे व उनके छोटे-बड़े बच्चे जो कि उस बूढ़ी पीठ झुकाकर चल रही औरत के तंत्र-मंत्र को टकटकी बाँधकर साँसे थाम कर देख रहे थे। वातावरण में वायु भी जैसे चुपचाप एक ओर खड़ी थी। इतना सन्नाटा था। सभी के सभी सट्ट मारे हुए थे। समय के कुछ क्षण यों ही बोझिलता से बीते।
फिर....
अचानक हवा का एक झोंका आया....। फिर दूसरा..., फिर तीसरा..., फिर चौथा। फिर अचानक आँधी जैसी तेज हवा चलने लगी रात्रि के इस पहले पहर में। सभी मछुवारिनों व बच्चों के लम्बे-लम्बे बाल जोरदार हवा के बल से हिलने लगे। मछुवारों के गले में बॅधा अगौंछा भी उड़ने लगा। सभी जान गये थे ये आत्माएँ हैं, उन मछुवारों के पूर्वजों की आत्माएँ जो बहुत शक्तिशाली थीं। सभी ने जाना। मैंने भी....
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