ई-पुस्तकें >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
गाँव की सारी औरतों और बच्चों ने देव को चारों ओर से घेर लिया जैसे वो कोई तमाशे की चीज हो। मैंने देखा....
‘‘अरे! इ कौन मरद है?‘‘ एक मछुवारिन ने बड़े आश्चर्य से पूछा जब देव को बिना हिलते ढुलते पाया।
‘‘इ हमका बाबा की मजार पर मिला!
‘‘इ हुवाँ जिन्दा ना बचत... यही मारे ऐका हियाँ लई आयन!‘‘ मछुवारे ने अपनी पत्नी को जवाब दिया स्थानीय भाषा में....
‘‘हाँ! हाँ! ठीके किहौ!‘‘ मछुवारिन बोली। वो तुरन्त ही घर में गई और एक मैला सा सिलेटी रंग का कम्बल लेकर आई जिसमें जगह-जगह से छेद थे और देव को ओढ़ा दिया जिसे उसे ठंड ना लगे।
‘मछुवारे काले है तो क्या हुआ कम से कम दिल वाले तो हैं!’ मैंने सोचा उनकी देव के प्रति ये दरियादिली देखकर.....
‘अरे! ऐका तो बहुत तेज बुखार पकड़े है!’ दूसरी मछुवारिन चौंकते हुए बोली जब उसने देव के सिर पर हाथ रखा। देव का शरीर बुखार से तप रहा था।
‘अम्मा का गौहराओ!’ उसने पास खड़ी दूसरी औरत से किसी को बुलाने को कहा और देव के जूते उतारे।
कुछ देर बाद.....
एक बूढ़ी औरत देव के पास आयी। वो बहुत अधिक बूढ़ी थी। निश्चित तौर पर सौ के पार। उसके सिर के सारे बाल सफेद थे बिल्कुल रूई जैसे सफेद। पैरों में उसने चाँदी के बड़े मोटे-मोटे कड़े पहन रखे थे जो आजकल के दौर में कोई नहीं पहनता।
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