ई-पुस्तकें >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘गायत्री! जीवन में ये पहली बार है कि हमारी वजह से कोई बेगुनाह मार खा गया हो!‘‘ देव ने अफसोस जताया पिछली घटना के लिए जब गंगा ने गायत्री को बुरा-भला कहा था।
‘‘हूँ‘‘ गायत्री ने सिर हिलाया।
‘गायत्री! हम नहीं जानते थे कि किसी से प्यार करने की इतनी बड़ी सजा मिलेगी हमें!’ देव ऊँचे स्वर में बोला कर्कश जैसे खुद को कोस रहा हो। अभी तक देव तो यही जानता था कि प्यार-व्यार ठीक-ठाक, अच्छी चीज ही होती है। पर कहते है ना कि हर चीज के दो पहलू होते हैं। अब देव ने दूसरा पहलू जाना था। दूध सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है पर वही गरम दूध पीने वाले की जीभ भी जला सकता है। बिल्कुल वही बात थी।
आँसू ऐसे दिए कि रो नहीं सकता.....
गम ऐसे दिये कि बता नहीं सकता...
तुमसे प्यार करने की सजा...
क्या कुछ कम नहीं हो सकती?
देव ने एक कागज पर लिखा और गायत्री को दिखाया-
मुहब्बत है चीज क्या ...
ये हमको .....बताओ....
ये किसने शुरू की ...
हमें भी सुनाओ ...
मैंने गाया मन ही मन ये सब प्यार-व्यार का चक्कर देखकर।
‘हूँ!’ गायत्री ने पढ़ा। वो अपनी लम्बी काली चोटी में बँधे परपल कलर के रबरबैंड से खेलते हुए बोली। अब उसे भी पता चला कि प्यार-व्यार जीवन में भारी त्रासदी भी ला सकता है।
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