ई-पुस्तकें >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
|
7 पाठकों को प्रिय 184 पाठक हैं |
आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘अगर तुम्हारी तरफ से हाँ होगी तो हम तुमसे शादी करेंगे!‘‘ देव ने मन की बात बतायी।
‘‘पर हमनें गंगा को देखा ...और उसे देखते ही हमें उससे प्यार हो गया पहली नजर वाला!‘‘ देव ने पूरी बात बतायी।
गायत्री ने देव को अपनी बाँहों के जाल से मुक्त कर दिया। वह खिड़की की ओर दौड़ गयी और बाहर की ओर देखने लगी। जैसे देव के कथनों का उस पर असर हुआ था। बैकग्राउण्ड में चीनी मिल की वही हजारों लाल बतियाँ जगमगा रही थी। खिड़की से आने वाली सुहावनी हवा के बल से गायत्री के बालों की गोल-गोल घूमी हुई हुई लटें देव की ओर उड़ रही थी जैसे देव को छूना चाहती हो। अब शाम विदा ले रही थी इसलिए अंधकार वातावरण में प्रवेश करने का अनुमति माँग रहा था। मैंने पाया....
गायत्री कुछ न बोली। उसकी आँखों में सवाल थे, प्रश्न थे, शिकायत का भाव था...।
‘ओह! देव! तुमने ये बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई?’ जैसे वो पूछ रही हो।
हमममम ......
दिल दे चुकेके .....सनममम.....
तेरे हो गये हैं हममम.....
तुम्हारी कसममम .......
तुम्हारी कसममम .......
देव ने गाया मन ही मन कि वो तो अपना दिल गंगा को दे चुका है। भले ही आज गायत्री के मन में देव के लिए भावनाएँ उत्पन्न हो गयी है पर ये निरर्थक है क्योंकि देव तो अपना दिल पहले ही किसी और को दे चुका है! अब दोनों पक्षों ने जाना....
|