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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

31


जैसा कि हमने प्लान किया था कुछ पाँच सात मिनट बाद हम उसी बीच के दूसरे किनारे पर थे। ये कोना भी काफी व्यस्त था। यामिनी वहाँ बेवजह मँडराती भीड़ का हिस्सा बन गयी। वो इस मौसम और शाम के रंगों के बीच सब कुछ भूल गयी थी लेकिन मेरे दिलो दिमाग में अभी भी सेन साहब की घोली कड़वाहट बाकी थी। अब तक मेरा मूड बहुत खराब था और ये बात यामिनी अच्छे से समझ रही थी।

‘अरे अब तो मूड ठीक कर लो। देखो कितनी खूबसूरत जगह है ये।’ बाहें फैलाये उसने एक गहरी साँस ली।

मैंने पैर से रेत के एक छोटे टीले को ठोकर मारी। चारों तरफ फैले लोग, बच्चे, भिखारी और खाने की चीजों के स्टाल।

‘ये जगह खूबसूरत लग रही है तुम्हें?’ अजीब बात थी। पैन्ट की जेब के अन्दर मेरे हाथ बार बार भींचे जा रहे थे। एक नाकामी सी घेर रही थी मुझे कि आज का ये शूट यामिनी की बदौलत पूरा हुआ है।

‘तुम अब अपना मूड ठीक भी कर लो अंश। शूट खत्म हुए आधा घण्टा हो गया है।’ कमर पर दोनों हाथ रखे उसने शिकायत से मेरी तरफ देखा।

‘हाँ, लेकिन मुझे बहुत दुःख हो रहा है, मैं उसे कुछ कह नहीं पाया। क्या वो हमेशा से परफेक्ट था जो आज एक न्यूकमर का मजाक बना रहा है!’ मैं एक खाली जगह देखकर नीचे रेत पर बैठ गया।

‘कोई नहीं होता लेकिन कामयाबी हर किसी का दिमाग खराब कर देती है।’ वो मेरे बराबर में बैठ गयी। सिमट कर, बाँहों को घुटनों के चारों तरफ लपेटकर, डूबते हुए सूरज को ताकते हुए- ‘ यकीन मानों अंश ये काम जो हमने किया है वो उससे बहुत आसान था जो सेन साहब कर रहे हैं। उनका गुस्सा होना एक हद तक सही भी था। एड मेकिंग में एक-एक सेकेण्ड मायने रखता है। तुमको वक्त लगेगा ये सब समझने में और जब समझने लगोगे तो तुमको बुरा भी नहीं लगेगा।’

‘देखते हैं यामिनी। मैं तो तुमसे कहने वाला था कि मुझे आगे से ये सब करने को कहना भी मत।’

मेरी बात को नकारती हुई एक मुस्कान के साथ उसने चेहरा औरों की तरफ फेर लिया।

‘तुमको पता नहीं है ना कि तुमको क्या मिला है, वर्ना लोग तो बस रैम्प वॉक तक ही सीमित रह जाते हैं। तुम्हारे लिए तो ये बड़ा आसान था ना। तुम्हारे लिए रास्तें औरों ने बना दिये, बस तुम्हें उस पर चलना था।’ उसने मेरे चेहरे को देखते हुए मेरे जवाब का इन्तजार किया लेकिन जब मेरी तरफ से कोई प्रतिक्रिया ना हुई- ‘संजय को तुमसे बेहद उम्मीदें है अंश।’ उसने दोबारा कोशिश की।

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