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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘एक्चुली एक क्लाईट का प्राजेक्ट इसी महीने पूरा करना है सेन्टर में तो...’

‘ठीक है दस दिनों में?’ उसने दोबारा पूछा। ‘मैं इससे ज्यादा वक्त नहीं माँग सकती उनसे।’

‘ये वही एड है जिसका आप इन्तजार कर रहीं थीं?’

‘नहीं वो अब पाइपलाइन में है। बड़ी डिल्स वक्त लेती है लेकिन ये भी कोई छोटा मौका नहीं है। कम से कम इससे तुम दोबारा लाइट में आ जाओगे।’

इसके बाद मैंने सोचने में एक पल नहीं गवाँया।

‘ठीक है मैं आ रहा हूँ।’

जिस दिन मुझे कोमल की भावनाओं का पता चला उस दिन से उसने सेंटर आना छोड़ दिया। हम सब उसे मिस कर रहे थे। सब उसे सेंटर बुला-बुलाकर थक गये थे। शोभा ने मुझे बताया कि वो ये जॉब और नहीं करना चाहती। वजह मैं जानता था और उस वजह को खत्म करना चाहता था। फिर आखिर एक दिन मैंने खुद कोशिश की।

उसे समझाने के लिए उसे फोन किया।

बड़ी दिक्कतों के बाद वो फोन पर आयी थी।

उसने बताया कि वो ये काम छोड़ने वाली है। ऐसा नहीं था कि कोमल मेरे लिए इतनी जरूरी थी लेकिन मैं जानता था कि वो मेरी वजह से ये काम छोड़ रही है जबकि उसे इस नौकरी की बहुत जरूरत थी। मेरी ही तरह उसके परिवार पर भी तंगी का दौर था। मैं ये भी नहीं चाहता था कि वो घर में अकेले रह कर और घुटे।

मेरे थोड़ी देर मनाने के बाद वो वापस आने को तैयार हो गयी।

लड़कियाँ!

शोभा ने मुझसे वादा लिया कि कोमल के बारे में जो कुछ उसने मुझे बताया वो हमेशा मेरे और उसके बीच ही रहेगा लेकिन खुद उसने कोमल के आते ही सारी बातें उसे बता दीं!

मुझे महसूस हुआ कि कोमल वापस आने के बाद सिर्फ एक दिन ही पहले जैसी थी, अगले ही दिन से उसका बर्ताव बदल गया। वो हम सब के साथ पहले जैसी स्वच्छन्द रहने की कोशिश कर रही थी, खासकर मेरे साथ लेकिन नाकाम रही। अपने एहसास छुपाना इतना आसान भी नहीं।

उसे देखकर ही जाहिर हो जाता था कि वो इस बीच कितनी परेशान रही है और अब तक है। जैसा हम सब ने सोचा था उसकी हालत वैसी ही थी। वापस आने के बाद वो सिर्फ मेरे लिए कॉलिंग करती रही। उसके मन में कहीं न कहीं ये बात थी कि मैंने उसे इसलिए वापस बुलाया है कि वो मुझे सेल करके दे सके लेकिन सच अलग था। अब मैं भी सेल्स कर लेता था और जितनी करता था वो काफी थी मेरे लिए। वो कॉल सेंटर सिर्फ मेरे लिए आती थी। सिर्फ इसलिए कि मैं अकेला न रहूँ, सिर्फ इसलिए कि मुझे सेल्स कर के दे सके।

मैं चाहता था कि उससे इस बारे में खुलकर बात करूँ। वो खुद से अन्दर ही अन्दर लड़ रही थी। उसके चेहरे पर हमेशा एक खिंचाव-सा बना रहता था।

कोमल को इस हाल में मैं ज्यादा दिन देख नहीं पाया। मेरा उससे इस बारे में बात करना जरूरी होता जा रहा था। जिस तरह मेरे समझाने से उसने जॉब रिज्वाईन की थी, शायद मेरे समझाने से वो सम्हल भी जाये।

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