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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

 

10

रात 9 बजे।


स्टेज के पीछे कुछ 12-13 लोगों की तरह मैं भी अपना दिल थामे अपनी बारी का इन्तजार कर रहा था। समीर स्टेज पर था। उसकी घबराहट उसके चेहरे के साथ उसकी वॉक में भी थी। वो उम्मीद छोड़ चुका था। यामिनी के शब्दों ने उसे मायूस कर दिया था।

वो अपना वॉक पूरी कर चुका था और जब वो वापस आया तो उसे देखकर मुझे ऐसा महसूस हुआ मानो वो कोई जंग जीत कर आया है। अब मेरी बारी थी!

स्टेज फेयर तो मुझमें ज्यादा नहीं था लेकिन हाँ, बाहर की वो थोड़ी-सी भीड़, जजेस, म्युजिक सब कुछ मिलकर जैसे मुझे बहुत नर्वस कर रहे थे। ये वाकई एक बड़ा मौका था लेकिन यामिनी की कही बातों के चलते मुझे, उतनी घबराहट नहीं थी जितनी शायद औरों को रही होगी।

मेरा नाम अनाउन्स हो चुका था और जिन्दगी में पहली बार मेरे कदम सहम कर उठे। पहले दो-चार कदमों में मुझे सबसे ज्यादा घबराहट हुई। फिर एक पल को मेरी नजरें वहाँ बैठे लोगों की तरफ गयी जो मुझे एक विश्वास के साथ देख रहे थे। जिस भीड़ के चलते मेरा आत्मविश्वास खत्म हो रहा था उसी ने मेरा आत्मविश्वास बढ़ा भी दिया। ये पहली बार था, जब मैं अपने लुक्स और लड़कियों का शुक्रगुजार हुआ। मेरी वॉक पर सबसे ज्यादा तालियाँ बजी और बजाने वालों में सबसे आगे लड़कियाँ थी। चार-पाँच लड़कियों का एक ग्रुप जो काफी चुलबुला-सा था उन्होंने सबसे ज्यादा बकअप किया। वो तालियाँ बजा रही थीं और साथ में सीटी भी। उनकी इस हरकत से मुझे खुद में ही हल्की-सी हँसी आ गयी।

इट वॉज ए बिट अम्बैरेसिंग! मैंने जैसे तैसे अपनी वॉक पूरी की। जब मैं वापस जा रहा था तो उन्हीं में से किसी ने चिल्ला कर कमेन्ट कर दिया - हे, योर किलिंग स्माईल!

तालियों की ऊँची तड़तड़ाहट के साथ मेरे जिन्दगी का एक बहुत बड़ा पल गुजर गया। वॉक खत्म होने के बाद भी मेरी मुस्कुराहट सिमट नहीं रही थी - ना जाने क्यों?

समीर का सिलेक्शन नहीं हो पाया। मेरी परफॉरमेन्स सबसे अच्छी तो नहीं थी लेकिन फिर भी मुझे फाईनल कर लिया गया।

इस कॉम्पीटीशन से मुझे मेरी जिन्दगी का पहला ऑफर मिला। हाँलाकि मेरे घर में अब तक किसी को इस हन्ट के बारे में कुछ खास पता नहीं था लेकिन जब मैं सिलैक्ट होकर घर पहुँचा तो सब बहुत खुश थे। मुझे कुछ दिनों बाद मुम्बई जाना था जहाँ से मुझे एक नया करियर मिलता, लेकिन मेरी मम्मी इस बात के लिए राजी नहीं हो रही थीं। उन्हें लगा था कि इस काम्पीटीशन के बाद ये सब यहीं खत्म हो जायेगा। न उनको और न ही खुद मुझे ये उम्मीद थी कि बात यहाँ से आगे भी बढ़ेगी।

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