ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
|
3 पाठकों को प्रिय 347 पाठक हैं |
जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
112
अस्पताल का हर हिस्सा नींद में डूब चुका था। बाहर बैठे लोगों से लेकर अन्दर सो रहे मरीज, सिक्योरिटी गार्ड तक गहरी नींद में थे और इस अन्धेरे से सन्नाटे में मैं इस अस्पताल के एक कोने से दूसरे कोने तक दौड़ता हुआ संजय को तलाश रहा था। वो इस वक्त भी राय साहब के साथ ही होगा लेकिन कहाँ? मेरे हाथ लगातार उसका नम्बर डायल कर रहे थे, अचानक उसने मेरी कॉल उठा ली।
वो अस्पताल के पिछली तरफ के गार्डन में था। मैं वहीं पहुँचा। राय साहब टूटे हुए से, मुँह लटकाये एक बैंच पर बैठे कुछ बड़बड़ा रहे थे और संजय पूरी तन्मयता के साथ हाथ बाँधे उन्हें सुन रहा था।
जैसे ही उसने मुझे आते देखा- ‘गुड हैवेन्स!’ उसने सिर पर झल्लाकर अपने चेहरे को हाथों से ढक लिया। शायद उसे डर था कि अब मेरे और राय साहब के बीच फिर से कोई कहा सुनी होगी और ये वाकई हो सकता था। इस बार राय साहब की तरह मैं भी कुछ ठीक मूड में नहीं था।
मैं उनके करीब पहुँचा। मेरी नजर सबसे पहले राय साहब पर ही रुकी, हो सकता है कुछ बाकी रह गया हो सुनने-सुनाने को लेकिन उसने मुँह बनाकर दूसरी तरफ घुमा लिया। मुझे भी कोई खास दिलचस्पी नहीं थी उसमें। मैंने सिर्फ संजय का फोन हाथ में लिया और वहाँ से चल दिया।
संजय ने राय साहब से इजाजत ली और मेरे कदमों के पीछे चलने लगा। ‘क्या बात है?’
उसे जवाब देने से कहीं ज्यादा जरूरी था उसे मोबाइल में वो वजह तलाशनी जो सोनू को ये कदम उठाने पर मजबूर कर गयी। मैं खामोश था। मेरे पैर कहाँ पड़ रहे थे इससे मुझे मतलब नहीं था बस मेरी नजरें उस स्क्रीन पर थीं। मैं इस लॉन के दूसरे कोने पर जा कर ठहरा। एक के बाद मैंने लगभग सब कुछ सुन लिया लेकिन कुछ हाथ लग ही नहीं रहा था।
संजय भी पिछले पाँच सात मिनट से अपने मन के सवाल दबाये बस फटी सी आँखों से मुझे देख रहा था। अब उसके होठों पर लगा बाँध टूट ही गया।
‘तू मेरे फोन के साथ कर क्या रहा है?’
इस बार मैं कुछ कहने वाला था लेकिन एक रिकार्ड़िंग की कुछ पंक्तियाँ मुझे रोक गयीं। मेरे और संजय के बीच हुई एक बातचीत जो बीच से रिकार्ड की हुई थी। हमारी ये बातचीत हुए तो साल भर बीत गया होगा।
मैंने उसे दोबारा प्ले किया।
|