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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

हमारे सामने बैठकर सबसे पहले उसने ये जताने की कोशिश की कि वो कितना मशरूफ है। फिर ये कि इस एजेन्सी में वो कितने मायने रखता है और आखिर में उसने हमसे बात की। कुछ बेमतलब सी बातें समीर के परिवार और उसकी गर्लफ्रेन्डस को लेकर। जब तक हम कमरे में थे मैं उन दोनों की बक-बक सुनता रहा। कोई काम की बात तो हुई ही नहीं लेकिन हाँ जब हम लिफ्ट से नीचे आ रहे थे तो एक गहरी साँस छोड़ते हुए-

‘ठीक है! आप दोनों इस हन्ट में पार्टीसिपेट कर सकते हो। वैसे हमारे लिए ये बहुत मुश्किल होगा अपने तीन बेहतरीन फाईनलिस्ट चुनना। आप देख ही सकते हैं कि हमारे पास हजारों प्रतियोगियों की भीड़ लगी है।’ उसने एक लापरवाह सी नजर रिसेप्शन पर डाली।

इस बार मैं चुप नहीं रह सका।

‘हाँ हम देख सकते हैं ये हजारों की भीड़।’ मैंने भी उसकी नजर का पीछा किया और वही ठहरा जहाँ बमुश्किल 30-35 लड़के अपने पार्टीसिपेशन फार्म हाथ में लिये खड़े थे।

हमने भी नीचे जाकर अपने फार्म जमा किये और घर को चल पडे।

विनय की छाप मुझ पर कुछ खास नहीं पड़ी थी। मुझे उससे किसी मदद की उम्मीद भी नहीं थी लेकिन उसने हमारी मदद की। हम शार्टलिस्ट हो चुके थे। कुछ दो राउन्ड के बाद मैं और समीर दोनों ही फाईनलिस्ट में थे। अब हमें एक करीब 400-450 लोगों के सामने परफारमेन्स देनी थी।

सारे दोस्तों के पास जाकर हमने अपने लिए कपडे़ चुने। जिसका जो पसन्द आया, उधार ले लिया।

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