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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

101

एक दोपहर।


हाथ में गुलाब का एक बुके थामें, माफी मिली मुस्कान चेहरे पर लिए मैं अपने फ्लैट के बाहर खड़ा था। करीब दस दिनों तक मैं शहर से बाहर था। सोनू मुझे थोड़ी नाराज थी क्योंकि मैं पूरे एक दिन देर से था।

उसने बनावटी गुस्से के साथ दरवाजा खोला।

‘सॉरी....।’ मैंने गुलदस्ता आगे कर दिया और मुस्कुराहट थोड़ी और बढ गयी। वो चुपचाप अन्दर चली गयी। जानता था कि इतना गुस्सा है नहीं जितना दिखाया जा रहा है। मुझे यकीन था क्योंकि उसने मेरी पसन्द वही नीली साड़ी पहनी हुई थी जिसमें उसे देखने के लिए मैं कुछ भी कर देता।

इत्मिनान के साथ सोफे पर बैठकर वो किसी मैगजीन के पन्ने पलटने लगी। मैंने अपना बैग फर्श पर रखा और उसके पास गया। इस बार घुटनों पर बैठकर मैंने वो गुलदस्ता उसकी तरफ बढ़ाया।

वो काफी कोशिश कर रही थी नाराजगी दिखाने की लेकिन उसकी उन बड़ी-बड़ी खूबसूरत आँखों ने उसका साथ न दिया। उनमें हँसी साफ झलक रही थी जो जल्द ही उतर कर उसके लबों पर भी फैल गयी।

मैंने उसे बाँहों में जोर से भींच लिया।

‘मुझे कुछ बताना है आपसे।’ कुछ देर में उसने मेरी बाँहें ढीली कर दीं।

‘क्या?’

उसने जो मुझे बताया वो बेहद नामुमकिन सा था। सोनू कुछ दो दिन पहले ही यामिनी हमारे घर आयी थी।

‘लेकिन क्यों?’ मैं हैरानी के साथ उठ गया।

‘नहीं ऐसा कुछ नहीं बताया। वो अन्दर तक नहीं आयी, थोड़ी जल्दी में थी। बस इतना कहा कि जब भी आप लौटें एक बार उससे बात जरूर कर लें।’

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