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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

99

मेरी शादी की पाँचवी शाम।


मैं अपने फ्लैट के बाहर खड़ा दरवाजा खुलने का इन्तजार कर रहा था। जिस दिन से मैं इस फ्लैट में आया था ये पहली बार मैंने इसकी डोर बैल बजायी थी। गति ने आकर दरवाजा खोला। लिविंग रूम हँसी - मजाक की आवाजों से गूँज रहा था।

मम्मी और बहनें सोनू के साथ बैठी अपनी वापसी की प्लानिंग कर रहीं थीं। जैसे ही उन सब ने मुझे आते देखा, वो फिर से जोर से हँस पड़ीं।

‘व्हाट इज राँग?’ मैंने पूछा और आगे बढ़ गया, ये सोचते हुए कि कोई फालतू सी वजह होगी उनके पास मुझ पर इस तरह हँसने की।

मैं गलत था और जैसे ही मैं अपने बेडरूम में पहुँचा, मुझे वो वजह मिल गयी।

‘गौड...!’ अपने सिर पर हाथ रखें मैं अपनी ही धुरी पर घूम गया। मेरे कमरे की हर दीवार मेरी ही तस्वीरों से ढक चुकी थी। अलग अलग समय की.... अलग-अलग मूड और पोज में खिंची तस्वीरें। ये एक बहुत उम्दा संग्रह था।

‘आपको कैसा लगा?’ सोनू चौखट से टिकी खड़ी थी। मुस्कुरा रही थी।

‘ये सब क्या है?’ मैं हैरानी से हँसता हुआ अपने पलंग पर बैठ गया।

‘आपको क्या दिखायी दे रहा है?’ वो मेरे बगल मैं बैठी उन तस्वीरों को देखने लगी।

‘जैसे-जैसे मेरी तस्वीरों की कोई बड़ी सी एक्जीबिशन हो।’ मैं हॅसा ‘और यही वजह थी न कि वो सब हँस रहे थे मुझ पर?’

उसने हाँ में सिर हिलाया और मेरी टाई ढीली करते हुए- ‘जब मैं घर से आ रही थी न तो, मेरी नजर बार-बार इन तस्वीरों पर जा रही थी, और लग रहा था जैसे अपनी सब से प्यारी चीज वहीं छोड़ रही हूँ, तो इनको अपने साथ ले आयी।’

‘लेकिन जब मैं यहाँ पूरा का पूरा तुम्हारे लिए हूँ तो क्यों तुम्हें इन तस्वीरों की जरूरत पड़ रही है?’

मैंने उसके आस पास बाँहों का एक घेरा बना लिया।

‘बस ऐसे ही।’ उसने मेरी टाई मेरे हाथ में दी और मेरे पास से उठते हुए- ‘मुझे आदत है इनकी।’ करीब चार फुट ऊँची एक तस्वीर के आगे खड़े होकर- ‘मैंने इनके साथ पाँच साल बिताये हैं अंश। इनमें बस अंश के साथ हँसी हूँ.... रोयी हूँ.... कभी कभी तो डाँट भी देती थी।’ खुद पर हँसते हुए- ‘सिली नो?’

मैं उसके करीब गया और फिर से उसे बाँहों में भरते हुए- ‘हाँ।’ उसके कन्धे पर अपनी ठोडी टिकाकर- ‘लेकिन मैं सोच रहा था कि बस इतनी ही थी कि और भी है? अगर यहाँ जगह कम पड़ रही है तो हम किचन में भी लगा सकते हैं। उसके अलावा गैस्टरूम भी है और फिर वाशरूम भी तो है।’ मैंने उसकी खिंचाई की।

हफ्ते भर तक मेरा पूरा परिवार मेरे साथ था। मैंने और सोनाली ने एक बार फिर उन्हें मनाया कि वो हमारे साथ, हमारे बीच ही रहें लेकिन उनका फिर वही जवाब था। गति और रेनू की पढ़ाई, उनकी अपनी नौकरी, पहाड़ और अपने घर से लगाव। पता नहीं उनके पास ना रुकने के कई कमजोर से बहाने थे या मेरे पास उन्हें रोकने की कोई ठोस वजह न थी।

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