ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
|
3 पाठकों को प्रिय 347 पाठक हैं |
जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
उसने अब तक जो किया उसकी वजह डर था... मुझे खोने का डर, मेरे बर्बाद होने का डर। बाजार में अपनी पकड़ कमजोर पडने का डर। कोई बहादुर इन्सान भी शायद इतना खतरनाक नहीं होता जितना एक डरा हुआ इन्सान हो सकता है।
मैं उसको सच बताता तो वो नहीं मानता, इसलिए झूठ बोलना पड़ा।
‘संजय, मैंने जो कुछ किया वो सब एक प्लान था। मैं सोनाली के प्यार की हद देखना चाहता था और मैंने देखा कि वाकई पागल है मेरे लिए।’ मेरा लहजा और मेरे लफ्ज दोनों ही लापरवाह थे ताकि उसे मेरा झूठ न दिखायी दे। ‘....मैंने उसे सिर्फ प्रपोज नहीं किया बल्कि चोट भी पहुँचायी ताकि उसके आँसू उसके बाप को दिखायी दें और यही एक चीज उसके गुस्से को रोक सकती है।’ वो मेरी बातें सुन रहा था अपनी साँसे रोके। ‘मैं जानता था कि राय उसके आँसू नहीं देख सकता और अब वो मजबूर होकर आयेगा हमारे आगे। और अब तुम उसके सामने शर्ते रखना। इट वाज ए प्लान।’ मैं इससे आगे न बोल पाया।
वो चुपचाप गौर से सब कुछ सुनता रहा बिना एक लफ्ज बीच में बोले। मुझे लगा था कि अब कॉल कट जायेगी लेकिन उससे पहले-
‘अंश तू आज कुछ अलग तरह की बात कर रहा है। मैं भी प्लानिंग्स करता हूँ लेकिन जो तूने किया उसे प्लान नहीं गेम बोलते हैं। तूने एक गलत इन्सान के साथ कुछ गलत कर दिया है, आई विश कि तूने ऐसा न किया होता। यहाँ गिरकर सम्हलने का मौका नहीं मिलेगा।’
वो निराश था।
मैंने उसे चकरा तो दिया ही। मैं संजय को एक गलतफहमी दे चुका था कुछ वक्त के लिए ही सही लेकिन आखिर कब तक?
|