ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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तीसरी दोपहर।
मैं उसके सामने जाने से बच रहा था। कोशिश थी कि उससे बात ही न हो मेरी। मैंने उसकी न जाने कितनी ही काल्स मिस कीं और मैसेजेस का कोई जवाब नहीं दिया जिनमें उसने मुझे मिलने के लिए बुलाया था। तीन बज रहे थे कि उसने एक बार फिर उसकी कॉल मेरे फोन पर आ गयी।
इस बार मुझे कॉल उठानी ही थी वर्ना वो खुद ही मेरे पास आ जाता।
सोनू न जाने अपनी खुशी नहीं बर्दाश्त कर पा रही थी या अपना दुःख। उसने ये बात सबसे पहले संजय से बतायी। और उससे बात करते ही संजय ने मुझे फोन किया।
जैसा मुझे डर था संजय वैसा ही बर्ताव कर रहा था। पाँच मिनट तक वो गुस्से में क्या कुछ बोले जा रहा था मैं ठीक से सुन तक न सका हाँ बस कुछ सवाल जवाब याद है।
‘अंश, तूने सोनाली को प्रपोज किया?’
‘नहीं। मैंने बस अपनी फीलिंग्स शेयर कीं उससे।’
‘टू हैल विद योर फीलिंग्स अंश...! वो वहाँ रो रही है तेरी इस हरकत की वजह से! मैंने मना किया था... समझाया था कि उससे प्ले मत कर लेकिन तुझे तो जैसे आदत हो गयी है....’
‘मैं उससे खिलवाड नहीं कर रहा।’
‘तो क्या कर रहा है?’ वो पल भर को थमा। ‘कितनी मुश्किल से उसके बाप को सम्हाल रहा हूँ मैं। उससे कर्ज वापस करने का वक्त माँग रहा हूँ और अब अगर इस हालात में उसे अपनी बेटी के आँसू दिख गये तो....’
‘मैं उसे समझाऊँगा...’
‘बस रहने ही दे, तू पहले ही बहुत कुछ समझा चुका है!’ वो एक बार फिर थमा। ‘सोनाली वहाँ आई थी ताकि तुम दोनों कोई हल निकाल सको लेकिन तू।’
उस दिन संजय ने वाकई मुझ पर अपना लावा उगला। न जाने क्या-क्या नहीं कहा। मुझे इन हालातों की उम्मीद तो थी लेकिन वो गुस्सा और उस डर की नहीं। वो सिर्फ अपने बिजनेस को लेकर डर नहीं रहा था बल्कि उसे मेरी और सोनाली की भी चिन्ता थी।
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