ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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मुझे उम्मीद थी कि संजय मेरी बात को ध्यान से सुनेगा, समझेगा लेकिन उसने कोशिश तक नहीं की। मैं जानता था कि हालात बदतरह होते जा रहे हैं। संजय किसी सूरत में मुझे छोड़ने को तैयार नहीं था इसलिए राय साहब उस पर अपना दबाव कसते ही जा रहे थे। जिस दिन से मेरे कदम इस शहर पड़े मैं हर रोज कुछ ना कुछ खो रहा था... मेरे दोस्त, चित्रकार बनने का सपना, मेरा परिवार, यामिनी, पढ़ाई... सब कुछ। अब पाँच साल बाद मैं फिर कुछ खोने को था लेकिन वक्त ये नहीं बता रहा था कि कौन? संजय? सोनाली या मेरी अपनी जिन्दगी?
मैं खामोशी से गेज विन्डो के सामने खड़ा हुआ ये बरसाती उदास शाम देख रहा था। एकान्त का खामोशी में भी सुर होते हैं भले ही निशब्द। अन्धेरा आसमान जैसे रात हो गयी हो। सहमा सा माहौल और वो टूटती बिखरती बूँदें... ये सब भी मेरे अपने मन की तरह ही खाली था। मैं उसे भरे हुए से आसमान से पूछ रहा था कि बता, अब क्या खोने को है कि किसी ने दरवाजे पर दस्तक देकर अन्दर आ गया।
‘गुड इवनिंग अंश।’ ये सोनाली थी। मुझे आसमान ने जवाब दे दिया।
सफेद रंग की एक पूरी आस्तीन की कमीज और मामूली सी नीली जीन्स पहने, एक ढीला सा जूडा और कुछ लापरवाह सी लटें जो उसके चेहरे पर गिरी हुई थीं। उसे इतने साधारण लिबास में मैं पहली बार देख रहा था।
आदतन मैं मुस्कुरा गया।।
वो भी कहीं जाकर बैठी नहीं बल्कि अपना पर्स मेज पर रखते हुए मेरे बगल में आ खड़ी हुई। वो भी खामोशी से उन्ही बूदों को देखने लगी जिनपर मेरी नजर थीं। उसके डूबे से चेहरे पर मेरे लिए काफी नाराजगी थी।
‘तुम अच्छे मूड में नहीं लग रहीं।’ मैंने हँसाने की कोशिश की।
‘शायद।’
‘कोई खास परेशानी?’ मैं उसे देख रहा था और वो बाहर।
‘नहीं, बस ऐसे ही।’ एक बार नजर मेरी तरफ हुई भी और फिर तुरन्त वापस। ‘और हो भी तो आप क्यों बताऊँ? आपको क्या?’
ये मेरी जिन्दगी की सबसे प्यारी शिकायत थी।
‘मैं सही था, तुम मुझसे नाराज हो।’ मुझे उसके बनावटी गुस्से पर हँसी आ गयी जो उस आभा को छुपा ही नहीं पा रहा था, मुझे देखकर उसके चेहर पर आ जाती थी।
‘आपको याद भी है कि कब आपने आखिरी बार मेरा नम्बर डायल किया था?’
‘मैं यहाँ नहीं था।’ मैंने बहाना बनाया।
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