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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

दोपहर चढ़ने लगी थी। तोहफे आने भी कम हो गये। अब मैं और सोनू उन तोहफों को खोलते हुए आपस में बात कर रहे थे। लिविंग रूम के फर्श पर बिखरे हुए तोहफों और पैकिंग पेपर के बीच।

जल्द ही उसने फिर एक चुभने वाला सवाल कर लिया।

‘सोनू तुम हमेशा ही ऐसे सवाल क्यों करती हो?’

‘शायद इसलिए कि एक पत्रकार का खून मेरी रगों में दौड़ रहा है या फिर इसलिए कि मैं आपके बारे में गन्दगी सुन सुनकर थक चुकी हूँ और अब आपसे सुनना चाहती हूँ.... कुछ खुशनुमा! कुछ अच्छा...।’

‘खुशनुमा?’ मैंने खीसें निकाली ‘ये लफ्ज मुझसे कोई सरोकार नहीं रखता।’ मेरी चिढ़ एक तोहफें के पैकिंग पर निकली जिसे मैंने गुस्से में खींचकर निकाला और एक तरफ फेंक दिया।

सोनू की नजरें कुछ देर ही उस पेपर पर रहीं।

‘कुछ तो होगा?’ उसे यकीन था।

मन तो हुआ कि उसे बोल दूँ कि अब जो कुछ मेरी जिन्दगी में खुशनुमा बचा है वो सिमट कर एक लड़की के रूप मे मेरे सामने बैठा है। बोल दूँ कि तुम्हारे अलावा और कुछ नहीं है लेकिन-

‘जैसे?’ मैं सारी रद्दी एक साथ जमा करने लगा।

‘जैसे... लाईफ, हैप्पिनेस एण्ड सक्सैस।’

वो कहते हुए जितनी खुश थी मैं सुन कर ना हो सका।

‘माय लाईफ, हैप्पिनेस एण्ड सक्सैस? व्हाट ए जोक!’ मैं हॅसा और उठकर कदम खिड़की की तरफ बढ़ा लिये। बाहर की मल्टीप्लैक्स बिल्डिंग को घूरते हुए- ‘सोनू जो मैंने अब तक जिया है, वो लोगों की नजर में तो वाकई ऐसा ही होगा लेकिन सिर्फ मैं जानता हूँ कि उसे याद करने और उसके बारे में बात करने तक के लिए मुझे बहुत हिम्मत चाहिये।’

मेरी आवाज मेरे शब्दों से भी ज्यादा खाली थी।

मैं उसकी तरफ घूमा। वो सोच में बैठी थी।

‘तो ठीक है...।’ वो अपनी जगह से उठ गयी और- ‘आपके पास यहाँ कोई ब्रेन्ड तो होगा ही शराब का।’ वो किचन की तरफ जा रही थी। मैं उसके पीछे गया। उसने फ्रीज खोलकर 2 थोड़ी बहुत पीकर बैठते हैं, तब तो आपको बोलने में कोई तकलीफ नहीं होगी। हाँ, हो सकता है कि आपको चुप कराने में मुझे तकलीफ हो जाये।’ उसका हाथ फिर फ्रीज पर जा रहा था लेकिन मैंने उसे पकड़ा और वापस लिविंग रूम की तरफ खींच लाया।

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