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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

75

मेरी सगाई के बाद पाँचवीं शाम।


बिस्तर पर औंधे लेटे हुए मैं अपनी सगाई की तस्वीरें देख रहा था। मैं वो भारी से पन्ने एक-एक कर पलट रहा था। हर पन्ना पलटते ही तस्वीरों में चीजें बदल रहीं थीं लेकिन एक चीज हर तस्वीर में समान थी- मेरी मुस्कान। हर किसी की तरह मैं भी मुस्कुरा रहा था लेकिन मेरी मुस्कान में वो खुशी नहीं थी जो प्रीती और बाकी लोगों की मुस्कान में थी। मैं दूसरों को खुश देखकर खुश था। मेरी हँसी कितनी बेजान थी... क्या मैं ऐसे हँसता हूँ? मुझे यकीन नहीं था।

संजय ने ये सारी तस्वीरें पहले ही देख लीं थीं... मुझसे भी पहले। और अब वो किसी जरूरी फोन पर था। मेरे पलंग के आस पास टहलते हुए वो बात कर रहा था। एक दो बार उसकी नजरें मुझ पर गयीं और आखिरकार-

‘तुम ढूँढ क्या रहे हो?’ उसने कॉल काटी और मेरे हाथ से एलबम लेकर एक तरफ रख दी।

‘कुछ नहीं।’ मेरी आवाज में सिर्फ एक शून्य था। ‘संजय, तुम जिया के लिए क्या फील करते हो?’ हाथों को गुद्दी के पीछे लगाये मैं पीठ के बल लेट गया।

‘अमम्....। ‘शादी से पहले वो मेरे लिए सिर्फ एक ऑप्शन थी....’ वो मेरे तकिये के बगल में बैठा। ‘...लेकिन अब बहुत स्पेशल हो गयी है। लगता है जैसे बस उसी के लिए जी रहा हूँ। सारी खुशियाँ उसे देने का मन करता है। मन करता है कि वो हमेशा मुस्कुराती रहे...’ उसके लफ्ज दिल की गहराई से निकल रहे थे। मैं कुछ देर उसका चेहरा ताकता रह गया।

‘मैं प्रीती के लिए ऐसा कुछ भी महसूस नहीं करता। मैं जब भी उसके साथ होता हूँ तो ऐसा लगता है जैसे...’ सिर को हाथ के सहारे टिकाकर, थोड़ा उठते हुए- ‘...जैसे मैं अपने किसी दोस्त के साथ हूँ। वो एक दोस्त के तौर पर बहुत अच्छी है लेकिन... लेकिन जो मैं यामिनी के लिए महसूस करता था, वो इसके लिए कभी नहीं महसूस कर पाऊँगा।’

‘तुम करने लगोगे अंश। थोड़ा वक्त दो।’ वो जाने के लिए उठ गया। ‘अंश अब सब कुछ सही चल रहा है तो अब कुछ दिन फैमिली से ब्रेक ले और मेरे साथ काम कर।’ ये एक हुक्म था।

‘लेकिन इतनी जल्द? कोई खास दिक्कत आ रही है?’

‘कोई खास दिक्कत?’ उसने जोर देकर कहा और हँसा। ‘सोनाली का बाप हमसे नाखुश है आजकल।’

‘क्यों?’ मैं उठ बैठा।

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