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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

74

सुबह 11 बजे।


आधा शिमला मिस्टर पुन्डीर के खूबसूरत महल के लम्बे चैडे लॉन में जमा था। सारे रहीस, कुछ ऑफिस के लोग और कुछ नेता। ये सब उन्हें बहुत अच्छे से जानते थे.... सब मिस्टर पुन्डीर के जानकारों में से थे लेकिन मेरी तरफ से इस सगाई में मेरे परिवार के तीन लोगों को छोड़कर बस संजय और उसका परिवार ही था।

रिंग सेरेमनी हो चुकी थी और अब मैं प्रीती के साथ खड़ा लोगों की बधाईयाँ ले रहा था।

‘तो कैसा लग रहा है भाई साहब?’ संजय ने मेरे कन्धे पर हाथ रखा।

‘जैसे कई सालों तक भटकने के बाद मैं अन्जाने ही किसी मंजिल पर पहुँच गया हूँ।’

‘सच?’ प्रीती संजय को कुछ खास नहीं भायी थी।

‘हाँ, मैं नहीं जानता था कि जो लड़की हमेशा मेरा सिर दर्द थी वो कभी मेरी मंगेतर बन जायेगी।’ मैंने उसके कान पर फुसफुसाते हुए कहा।

‘तभी तू अँगूठी पहनाते हुए इतना मुस्कुरा रहा था?’

हम दोनों हँस पड़े।

मैं अपनी जिन्दगी से खुश था लेकिन शायद मेरी जिन्दगी मुझसे नहीं।

मेरी उम्मीदों को विपरीत प्रीती ने मुझे ये महसूस कराना नहीं छोडा कि मैंने ये फैसला अधूरे मन से लिया है। सगाई हो जाने के बावजूद भी उसकी सोच नहीं बदली। उसका ये अविश्वास कई बार मुझे वाकई हिलाकर रख देता था, कई बार मुझे भी ये महसूस होने लगता कि मैंने वाकई जल्दी में फैसला किया है, गलत फैसला लिया है।

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