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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

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संजय बेसब्री से मेरी वापसी का इन्तजार कर रहा था। वो मुझे उस लड़की से मिलाना चाहता था जो अब उसकी जिन्दगी में थी। जिससे उसने अपने भविष्य को जोड़ना ठान लिया था- जिया।

मेरी वापसी के तीसरे दिन उसने किसी प्राइवेट शिप में एक छोटी सी पार्टी प्लान की थी। ये एक मिलाजुला उत्सव था उसकी सगाई और हमारे बीच हो रही पार्टनरशिप का। पोर्टिको में काम बढ़ गया था और यामिनी के चले जाने से संजय को एक नये इन्सान की जरूरत थी जो उसके काम को समझता हो, जिस पर वो भरोसा कर सके। मेरे रिश्ते उससे हमेशा ही सही चले इस कारण उसने ये जिम्मेदारी मुझे ही सौंपी।

मैं शुरुआत से ही उसके काम में उसका हाथ बँटा रहा था। उसका आधा काम तो मैंने हमेशा से ही सम्हाला था अब तो बस हम कागजों पर दस्तखत भर कर रहे थे।

करीब आधी रात हो चुकी थी। जश्न अपने शुमार पर था। नशे की हालत में लोग आधे पागल हो चुके थे। कुछ चीख रहे थे, कुछ किसी बेकार के मुद्दे पर बेतुकी बहस कर रहे थे, कुछ अपने खोये प्यार की यादों में आँसू बहा रहे थे और कुछ बिल्कुल नये अन्दाज में नाच रहे थे।

हर तरफ ऐसे ही दिवानों की भीड़ थी लेकिन मैंने अपने लिए एक खामोश कोना ढूँढ ही लिया.... और उस अपनी उस नयी दोस्त के लिए भी जो बस अभी कुछ देर पहले ही मुझे मिली थी।

मैं उसके चेहरे से उसकी बिखरी लटों को हटाने में मशरूफ था कि अचानक-

‘एक्सक्यूज मी मैम।’ एक हाथ ने मुझे पीछे खींच लिया।

मैंने पलटकर देखा और अफसोस से आँखें मींच लीं - संजय!

‘तुम मुझे थोड़ी भी देर खुश नहीं देख सकते ना?’ मैं अपनी शर्ट के बटन लगाते हुए उसके पीछे चल दिया।

‘वो तेरे लिए सही नहीं है।’ एक लापरवाह सा जवाब।

‘मैं सिर्फ टाईम पास कर रहा था। यहाँ कोई भी मेरे टाईप की नहीं है।’ मैंने बेचारगी से उस भीड़ की तरफ देखा।

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