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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

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प्रीती को पता था कि मैं कुछ परेशान चल रहा हूँ। उसने मनोज और समीर को मेरे साथ कुछ वक्त बिताने के लिए पूछ लिया। शायद इस तरह मैं कुछ बेहतर महसूस करता?

वो अगली ही सुबह मेरे घर पर थे। उन्हें देखकर मुझे सच में बहुत खुशी हुई। करीब तीन साल बाद में उन्हें मिल रहा था, लगा जैसे तीन साल बाद आइने में खुद को देख रहा हूँ। अंश, जो एक मॉडल और एक बड़ी शख्सीयत में दफन हो चुका था, जैसे अचानक जिन्दा हो गया।

उन दोनों ने मुझे अपने घर आमंन्त्रित किया। सबसे पहले मैं मनोज के परिवार से मिला और उसके बाद हम तीनों समीर के घर जा रहे थे। पड़ोसी होने के नाते मेरा दोपहर का खाना वहीं प्लान था।

एक लम्बे अन्तराल के बाद हम फिर से पहले की तरह शिमला घूम रहे थे। मैं समीर के साथ अगली सीट पर था। शिमला में वैसे तो काफी कुछ बदल गया था लेकिन मेरे लिए उस जगह होने का एहसास आज भी वैसा ही था। कुछ नयापन आ गया था लोगों की नजरों में मेरे लिए। जो लोग कभी मुझे रे-बे-ते कर के पुकारते थे वो बड़ी तमीज, बड़े अटपटे से तरीके से मिल रहे थे। सबसे ज्यादा मुझे मनोज और समीर ने चौंका दिया जब उन्होंने मुझे बताया कि वो सिर्फ प्रीती के कहने पर मुझसे मिलने आये हैं।

‘क्यों मनोज, समीर। ऐसा क्या हो गया है तुम लोगों को कि तुम लोग खुद मुझसे मिलने नहीं आ सकते?’ मैंने हैरानी से एक एक कर दोनों को देखा।

‘वो, यार तू बड़ा आदमी बन गया है न अब, जरा झेंप लगती है बिना बुलाये आने में।’ ये जवाब समीर ने दिया था लेकिन राय मनोज की भी थी।

‘क्यों? बचपन में तुझे कोई न्यौता देने की जरूरत नहीं पड़ी। मैं स्कूल जाते हुए बाहर इंतजार करने को कहता था तो मेरे कमरे में चला आता था, बिना पूछे मेरी चाय पी लेता था चाहे वो जूठी ही क्यों न हो! अब क्या हुआ?’ मैंने समीर से पूछा।

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