ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘....परेशान हो चुकी हूँ मैं! ये वक्त ठहर गया है अंश। जिन्दगी तो तुम्हारी आगे निकली है... मुझसे पूछो, मेरी जिन्दगी स्कूल से आगे अब तक बढ़ ही नहीं पा रही। कितनी कोशिश करती हूँ कि वक्त बदले, मेरी जिन्दगी बदले, मैं बदल जाऊँ! लेकिन नहीं बदल पा रही, मैं, मैं।’ वो रो पड़ी!
वो किसी गहरी किलस में रोये जा रही थी। एक चिढ़ थी शायद उसे अपने आप पर ही! कितनी टूटी सी।
बड़ी अजीब बात थी! जो उस पर बीत रहा था उसे हम दुःख कह सकते हैं लेकिन जो मुझे महसूस हुआ वो पता नहीं क्या था, मुझे प्रीती की तकलीफ महसूस हो रही थी। यामिनी ने मुझे कम से कम इस काबिल तो बना ही दिया था। मुझे प्रीती का दुःख इतना महसूस हुआ जितना कभी नहीं हुआ था। इतना महसूस हुआ कि उसे गले लगा लिया। इतना, कि उसके साथ मेरी भी आँखें भीग गयीं। उसके बाद उसकी सिसकियाँ कमरे में तब तक थी जब तक वो गयी नहीं। हम दोनों चुप थे। चाहते थे कि बात को बदल दें लेकिन नहीं बदल पाये। कुछ और मिला ही नहीं बोलने को।
‘मुझे जाना है।’ अपने आसूँ पोछते हुए वो उठी।
‘हम्म।’ मैंने जैसे अपने आप से ही कहा।
मैं उसे उसके घर तक छोड़ आया। वापसी में रास्ते भर उसके बारे में सोचता रहा। मैं जानता था कि उसका प्यार सच्चा है। मेरी जिन्दगी की एक ये ही लड़की ऐसी थी जो आज तक बदली नहीं। वो आज भी वही प्रीती थी जो कभी स्कूल में मुझे मिली थी और शायद वो आज तक उसी अंश को चाहती होगी जिसे उसने स्कूल में चाहना शुरू किया था लेकिन अब मैं वो नहीं था।
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