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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

56

रात 10 बजे।


अपने बैग को पीठ पर लादे में भारी से कदमों से अपने फ्लैट की तरफ बढ रहा था। मैं गैलरी में ही था कि देखा उस हल्के अन्धेरे में कोई मेरे दरवाजे से पीठ टिकाये, कुछ झुका-हारी सी हालत में खड़ा है। ये कोई लड़की थी।

मेरे हर बढते कदम पर उसका चेहरा और साफ होता गया। यकीनन! ये यामिनी ही थी। एक मुस्कुराहट मेरे लबों को फैला गयी। उसे कैसे पता चला होगा कि मैं कब लौट रहा हूँ? संजय से? हो सकता है।

इस अपराध को करने के बाद मैं उससे कुछ उम्मीद रखने लगा था। लगा कि वो मुझे वापस अपनी जिन्दगी में उसी तरह ले लेगी। मैं उससे कई उम्मीदें जोड़ रहा था और मेरी उम्मीदों का बहुत अच्छा जवाब दिया मुझे। जैसे ही मैं उसके करीब पहुँचा, उसने मेरे गाल पर एक थप्पड जड़ दिया!

कुछ पलों को हम दोनों ने एक शब्द भी नहीं कहा था एक दूसरे से, बस एक दूसरे को जलती सी आँखों से घूरते रहे, ताकते रहे। ये यामिनी थी वर्ना इस थप्पड़ का जवाब मैं भी उसी तरीके से दे सकता था। उसके गुस्से और थप्पड़ को नजरअन्दाज करना ही पड़ा।

जबडों को भीचते हुए, गुस्से को पीते हुए मैं चुपचाप अपने फ्लैट का लाक खोलने लगा।

‘बहुत अच्छा किया अंश, यू शुड प्राउड टू डू दिस!’ उसकी आँखों में गुस्सा और आँसू दोनों ही थे।

‘थैंक्स! अन्दर आना चाहोगी?’

मैंने अन्दर आकर अपना बैग फर्श पर फेंका और आँखें बन्द किये चुपचाप सोफे पर बैठ गया।

‘तुम समझते क्या हो खुद को? क्या, करना क्या चाहते हो तुम?’

ना मैंने अपनी आँखें खोली, ना होठ। ‘तुम्हें वहाँ कोई प्राब्लम हो जाती तो? संजय नहीं आता तुम्हें बचाने! कोई नहीं बचा पाता तुमको!’

‘तो तुम्हें इससे फर्क पड़ता है?’ मेरा गुस्सा उसकी तरह बेलगाम नहीं था। वो कुछ जवाब न दे सकी। मैं अन्दर गया और पानी की एक ठण्डी बोतल के साथ-साथ लौटा। वो अब तक भी अपनी जगह पर ही खड़ी थी.... हैरान! उलझी! डरी सी!

‘मुझे नहीं लगा कि मैं फँस सकता था। इन लोगों की सेटिंग थी वहाँ।’ मैंने बोलत मुँह से लगा ली।

‘अंश कितने लोगों से सेटिंग होगी इनकी? तुमको क्या लगता है? एक से? दो से? लेकिन सबको नहीं खरीद सकते ये लोग!’

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