ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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जूहू तारा रोड के बेहद खूबसूरत रेटोरेन्ट के खुले टैरिस में कोने की एक प्राइवेट टेबल। ये मेरी पसन्दीदा जगहों में से एक थी जहाँ मैंने यामिनी के साथ सबसे कीमती पल बिताये थे। शाम का सांवला आसमान, समन्दर की लहराती लहरें जो पास आती सी दिखायीं देती और खुली हवा, हमेशा ही बेहद खुशनुमा थी लेकिन आज नहीं।
कुछ महीनों पहले मैंने सोनाली से वादा किया था कि मैं दोबारा उसे मिलूँगा और उसी के मुताबिक मैं यहाँ था। उसे मेरे सामने बैठे करीब बीस मिनट बीत चुके थे लेकिन मैं उससे आज कुछ खास बात न कर सका। ये यामिनी का पहला जन्म दिन था जब वो मेरे साथ नहीं थी और मुझे उसकी कमी बहुत महसूस हो रही थी।
कुछ यादों को दोहराते हुए मैं अपनी कोल्ड कॉफी की पहली घूँट लेने वाला था कि-
‘अंश ये यामिनी, आपकी कौन से नम्बर की गर्लफ्रेन्ड थी जिसे आपने छोड़ा?’
‘क्या?’ सारी सोच एक तरफ हो गयी! उसकी सबसे खास बात थी कि वो जब भी कुछ सोचकर बोलती, तो मुझे चैंका देती थी।
‘मैं पूछ रही थी कि ये आपकी कौन से नम्बर की गर्लफ्रेन्ड थी...’ वो दोबारा उसी सादगी से शुरू हो रही थी लेकिन-
‘ये नम्बर क्या होते हैं?’ मैंने उसे टोक दिया ‘और किसने कहा कि मैंने उसे छोड़ा? ये खबरें कहाँ से लाती हो तुम?’ मैंने अपना कप वापस रख दिया। पहले उससे ही निपटना जरूरी था।
‘मुझे खबर लाने की जरूरत नहीं पड़ती वो खुद मेरे पास पहुँच जाती है।’ पहले तो उसने इसी जवाब से मुझे टालने की कोशिश की लेकिन जब मेरे चेहरे पर अविश्वास के भाव देखे तो उसे सच बोलना ही पड़ा।
‘एक्चुअली मेरे पापा की किसी से बात हो रही थी कि ऐसी कोई खबर है।’
‘तो तुम खबरें भी सुनती हो?’ मैंने इस बात को ज्यादा तूल नहीं दी। ये अब आम बात हो गयी थी।
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