ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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जब खुद पर बीता, तब एहसास हुआ कि प्यार किस मजबूरी का नाम है? आप कितने मोहताज हो जाते हैं किसी के। आप चाहें ना चाहें लेकिन आपका दिमाग बस उसे ही सोचता है। वो सुने ना सुने लेकिन आपका दिल उस इन्सान को आवाज देना नहीं छोड़ता। कितने ही जख्म उससे मिले लेकिन फिर भी खुद को रोक नहीं पाते उसे चाहने से।
एक रिश्ता मरा और कुछ और पैदा हो गये।
उस वक्त मुझे ऐसे दोस्त की ही जरूरत थी जो मुझे सुन सके। मेरे जज्बातों को समझ सके। जिसके साथ मैं अपनी तकलीफ बाँट सकूँ और प्रीती में मुझे वो सब मिल गया... और उसके अलावा कोई मुझे समझ सकता था तो वो थी सोनाली।
एक बार फिर ये एक बेनाम रिश्ता था। वो मेरे लिए क्या है या मैं उसकी जिन्दगी में कहाँ हूँ ये कोई सवाल नहीं था, बस उसके साथ वक्त बिताने से सुकून मिलता था मुझे। उसने मेरे अन्दर की कमी को भर सा दिया था। उसके साथ होना यूँ होता था...... जैसे मुद्दत बाद मैं साँस ले रहा हूँ। वो दोस्त नहीं थी... प्रेमिका नहीं थी लेकिन फिर भी कुछ थी... कुछ, जो बहुत मायने रखता हो।
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