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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

49

कुछ दिन बाद। एक रातः


मेरी हर साँस के साथ धुँआ भी निकल कर हवा में उठता जा रहा था। कोहनी के बल दूसरे के स्नूकर टेबल लेटे हुए, शून्य सी आँखों से मैं यहाँ वहाँ दौडती बाल्स को देख रहा था। हर एक निशाना अचूक था। संजय इस खेल में भी माहिर था। क्यूब बॉल पूरी तरह से सम्मोहित थीं उससे।

अक्सर मैं भी उसके साथ खेलता था लेकिन उस दिन नहीं। जिस दिन से यामिनी वापस गयी थी मेरी जिन्दगी का हर कोना खाली हो गया था। मेरी हर साँस मेरे ही सीने में चुभने लगी थी। पहली बार चोट खाकर तो मैं सम्हल ही गया था लेकिन मुझे उससे ऐसी उम्मीद ही नहीं थी। इतना खालीपन भर चुका था मेरी जिन्दगी में मानों अब कोई बचा न हो मेरे साथ.... खुदा तक नहीं।

एक बार फिर मुझे मेरे अकेलेपन में सुकून मिलने लगा था। सबसे ज्यादा अच्छा लगता था कि अपने कमरे के किसी अन्धेरे कोने में बैठा रहूँ और यही मैंने किया। कम से कम 15 दिनों तक मैं किसी से मिला नहीं, किसी से फोन पर 2 मिनट से ज्यादा बात नहीं की। मैं कहीं नहीं गया और न ही किसी को अपने पास आने दिया। कभी शराब की कड़वाहट के साथ और कभी सिगरेट के तीखे धुँए के साथ अपने दिल की जलन को कम करने की कोशिश करता रहा। उस रात संजय मुझे जबरदस्ती कर के अपने साथ ना लाता तो उस रात भी मैं वही कर रहा होता।

ये पहली रात थी जब उसने पी नहीं थी लेकिन अब भी वो काफी बकबक कर सकता था।

वो बोले जा रहा था और मैं उसकी बातों को धुँए के साथ लापरवाही से उडा रहा था। काफी बोल लेने के बाद उसने मेरी तरफ सवालिया सी नजरें कीं और- ‘मुझे लगता है कि मैं बोल चुका हूँ।’

मैंने सिगरेट एक तरफ फेंक दी जो वैसे भी खत्म होने को थी और खुद को थोड़ा कम्फर्टेबल करते हुए-

‘तुम्हें नहीं लगता कि लैक्चर अटैण्ड करने के लिए ये वक्त कुछ ठीक नहीं है?’

‘ये लैक्चर नहीं है अंश। आखिर कब तक मातम करेगा उसका?’ दोबारा निशाना लगाने के लिए झुकते हुए- ‘ यहाँ हमें भी जरूरत है तेरी। इस काम में कोई किसी का इंतजार नहीं करता।’ और निशाना सटीक था!

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