ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
उस दिन प्रीती ने पहली बार मुझे बोर किया। हमने थोड़ी देर बात की। उसकी बेतुकी बातें, बिना बात हँसना, मुझे देखकर शर्माना, बड़ा अजीब बर्ताव था लेकिन एक बात थी कि वो सच में मेरी मीराबाई बन गयी थी। जिस तरह वो बेवजह मुझसे झेंप रही थी ऐसा लग रहा था जैसे मैं साँस नहीं ले पा रहा हूँ। उसे देखकर समझ आ रहा था कि वो इस इन्तजार में है कि मैं उससे कुछ कहूँ। किसी तरह का इजहार।
मुझे प्रीती में कोई दिलचस्पी नहीं थी। मैंने उसे आखिरकार साफ साफ ही कह दिया।
‘देखो प्रीती, तुमको समीर पसन्द करता है मैं नहीं।’
‘क्या?’
‘हाँ सच, चाहो तो उसी से भी पूछ लेना।’
थोड़ी देर तक वो खड़ी सोचती रही और फिर उसके चेहरे के भाव बदल गये।
‘तुम दोनों मिलकर मुझे चीट कर रहे हो?’
‘नहीं। मैंने क्या किया?’
‘तो? समीर आकर कहता है तुम पसन्द करते हो, तुम कहते हो वो करता है। मैं पागल नहीं हूँ अंश!’ वो चिल्ला पड़ी।
‘तुम चिल्ला क्यों रही हो?’
उसकी तेज आवाज आने जाने वालों का ध्यान खींच रही थी।
‘अगर समीर ने झूठ कहा तो तुम क्यों उसका साथ दे रहे थे अब तक?’
‘मैंने ऐसा कभी कुछ कहा तुम्हें? मैं तो बस तुमको एक क्लासमेट की तरह ही ट्रीट करता हूँ।’
मेरे जवाब साफ थे। हालांकि उसके लिए यकीन करना मुश्किल था फिर भी -
‘यू रियली डोन्ड लाईक मी?’
‘आई एम सॉरी प्रीती, बट आई रियली डोन्ट।’
‘ईवन आई एम सॉरी अंश! तुमको बहुत परेशान किया। आई एम वैरी सॉरी।’ अपने आँसुओं और कमजोरी को छुपाती हुई वो तेजी से मुझे छोड़कर चली गयी।
उसकी रुआँसी आवाज सुनकर बुरा लगा और उससे ज्यादा बुरा ये कि जहाँ हम खड़े थे, वो जगह घर से थोड़ी और दूर थी। मुझे बहुत देर तक पैदल चलना पड़ा घर तक पहुँचने के लिए।
जो कुछ हुआ, मैंने समीर के घर जाकर उसे सब बता दिया और साथ ही कह दिया कि वो प्रीती को अपनी तरफ से भी सब कुछ साफ करे। समीर ने अगले दिन प्रीती को सब कुछ बता भी दिया और साथ ही उसे अपनी तरफ से प्रपोज भी कर दिया लेकिन वो नहीं मानी। मेरा जवाब सुनने के बाद कुछ दिनों तक उसने अपनी हरकतें बंद कर दीं। मुझे लगा कि अब वो ठीक हो गयी है लेकिन कुछ दिनों में उसने फिर छुप-छुपकर देखना शुरू कर दिया। साथ ही क्लास में मेरे और प्रीती के झगडे़ की खबर फैल गयी। वो बहुत परेशान रहने लगी। फिर एक दिन समीर ने मुझे उसका एक खत दिया जिसे उसने अपने खून से लिखा था। मैं उसकी हरकतों से पागल हो गया। हम तीनों दोस्तों ने इस मामले का हल निकालने की कोशिश की। जिस दिन मुझे उसका खत मिला था उसके दो दिन बाद हम तीनों लंच ब्रेक में इस बारे में बात करने लगे। या यूँ कह लो कि मनोज और समीर बोल रहे थे और मैं सुन रहा था।
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