लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

347 पाठक हैं

जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘अरे.... ऐसा कुछ नहीं है।’ संजय ने लैपटाप अपनी तरफ सरका लिया। ‘तुम पहले ही थके हो अंश। तुम्हारी इम्पोर्टेन्ट मेल्स का रिप्लाय मैं कर दूँगा।’ सब कुछ जानते हुए भी वो मुझे डॉली की तरफ धकेल रहा था जैसे कभी यामिनी की तरफ धकेला था।

मैं जितनी बार भी उसकी तरफ देख रहा था, इशारा कर रहा था कि अब बस करे लेकिन उसने माना नहीं। उसके लिए ये मजाक था लेकिन दूसरी तरफ डॉली पर गुजरता हर पल भारी था। जब उसने देखा कि उसके सारे बहाने नाकाम हो गये तो अपने ऊपर जूस गिरा दिया और- ‘ओह! आई एम सॉरी!’ वो बिना इजाजत लिये ही बाहर दौड़ गयी। वो संजय को फिर कोई मौका नहीं देना चाहती थी।

जैसे ही उसने केबिन से बाहर कदम रखा, संजय ने उस पर ठहाका लगा दिया।

‘इसमें इतना खुश होने की क्या बात है?’ मैंने चिढ़कर कहा और उसके पीछे बाहर चला गया। किसी की झेंप, किसी की कमजोरी दुनिया के लिए चुटकुला हो सकती थी लेकिन मेरे लिए नहीं।

मैंने उसे ढूँढा, वो तेजी से बाहर जा रही थी।

‘डॉली, वेट!’ मैंने उसे आवाज लगायी। वो वहीं जड़ हो गयी। मैं उसके पास गया। ‘तुम्हें नहीं लगता तुम्हें पहले ये साफ कर लेना चाहिये?’

‘बाद में कर लूँगी।’ उसका सकपकाया सा जवाब थोड़ा नाराज भी था मुझ पर। संजय के मजाक का हिस्सा उसने शायद मुझे भी मान लिया था।

‘डॉली ये भद्दा लग रहा है।’ मैंने जोर दिया।

उसने एक पल को सोचा, बाहर की तरफ दो-चार कदम बढ़ाये, किसी उलझन में मेरे चेहरे पर देखा और आखिरकार वाशरूम की तरफ चल दी।

मैं उसे देख तो रहा था लेकिन समझ ना सका कि वो आखिर करने क्या वाली है?

ये पहली बार मैंने उससे काम के अलावा कोई बात करने वाला था।

उसके इस बचकाने बर्ताव को अब वाकई बदलने की जरूरत थी। सारी एंजेन्सी में उसका मजाक बना हुआ था। सब कहते थे कि इसे ‘अंश फोबिया’ है। वो एक डरपोक सी लड़की थी एक छोटे से कस्बे की। मैं समझ सकता था कि उसे कितनी दिक्कतें आती होगीं मुम्बई जैसे नये शहर में, नये लोगों के बीच अपनी जगह बनाने में।

मैं उसका वाशरूम से बाहर आने का इन्तजार कर रहा था। वो थोड़ी देर से बाहर आयी। उसे ये उम्मीद बिल्कुल नहीं थी कि मैं अब भी उसका इन्तजार कर रहा हूँ। उसका मुझे देख कर चौंक जाना लाजमी था। उसे सहज करने के लिए मैं मुस्कुराया लेकिन उसके चेहरे पर तब भी वैसे ही भाव रहे मानों वो किसी जंगली जानवर के बगल से गुजर रही हो जो किसी भी पल उसे काट खायेगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book