ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
उसने धीरे से उसके शरीर से कोट उठाया और उसे पुकारा। वह नींद में डूब रही थी। उसे इस संसार की कोई सुध न थी। विनोद ट्रक से उतरा और ड्राइवर को कुछ रुकने के लिए कहकर सामने ही एक होटल में चला गया।
जब वह लौटा तो माधवी जाग चुकी थी। उसकी अनुपस्थिति में शायद वह घबरा रही थी। विनोद को आता देखकर वह अपने आपे में आ गई और झट बोली-'कहाँ थे आप?'
'सामने होटल में ठहरने का प्रबन्ध करने गया था।'
'कुछ हुआ?'
'हाँ, केवल एक कमरा मिला है। यदि मिलिट्री में न होते तो शायद वह भी न मिलता।'
'तो...'
'ऐसा करो, तुम रात यहाँ रहो, मैं किसी फौजी सराय की खोज में जाता हूँ।'
'वह किसलिए?'
'तो रात कैसे कटेगी?'
'यहीं...एक कमरा थोड़ा है?' माधवी ने तिरछी दृष्टि से उसे देखते हुए कहा-'हम चोर तो हैं नहीं जो एक-दूसरे का कुछ चुरा ले जाएंगे?'
माधवी की बात पर विनोद हँस पड़ा। उन्होंने देखा-ट्रक का ड्राइवर भी उनकी ओर देखकर हँस रहा था। विनोद ने उसे देखकर अपनी हँसी रोक ली और जेब से दस रुपये का नोट निकालकर उसे देना चाहा।
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