ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'पर क्या कहूँ?'
इतने में इंजन ने सीटी दी और बाहर मिलने वाले अन्तिम बार विनोद को देखने के लिए आगे बढ़े। कामिनी झट से उठी। विनोद ने पूछा-'तो क्या मन की बात न कहोगी?'
लोगों का पास इकट्ठा होना, समय की तंगी और दोनों का एक लम्बे समय के लिए बिछोह, इन सब विचारों ने मिलकर चंद क्षणों के लिए कामिनी के मस्तिष्क में विचित्र संघर्ष उत्पन्न कर दिया और वह धीमे स्वर में बोली- 'आपके घर एक नन्ही जान आने वाली है।'
'नन्हा या नन्ही?' विनोद की बात मन ही में रह गई और झट से भाभी ने खींचकर कामिनी को नीचे उतार लिया। गाड़ी चल पड़ी। विनोद की आँखों में कई चित्र उभर आए थे।
4
धीरे-धीरे अतीत की स्मृतियाँ धुँधली होने लगीं और विचारों का तांता टूट जाने से विनोद अपने-आप ही चौंक उठा। यों लगा जैसे किसी ने स्वप्न से उसे झँझोड़कर जगा दिया हो।
वायुयान अपनी गति से उड़ा जा रहा था। नीचे झाँकने पर घनी गहरी घाटियों के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देता था। कहीं-कहीं झरने और नदियाँ यों लगतीं मानो पिघलती हुई चाँदी हरी-भरी घाटियों पर बिखरी हुई हो।
विनोद ने साथ वाली सीट पर दृष्टि फेंकी-वह सुन्दर लड़की पत्रिका पढ़ते-पढ़ते सो गई थी। पत्रिका उसके वक्ष पर उल्टी पड़ी हुई थी और उसकी गोरी कोमल उँगलियाँ उसे थामे हुए थीं। बिनोद बड़े ध्यान से उसको निहारता रहा।
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