ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
विनोद कामिनी के कमरे से उठकर बाहर ही आने को था कि उसके कान में कामिनी के कुछ शब्द पड़े-'कल से कुछ अच्छा है।' विनोद ने सुना और मुंह चिढ़ाता हुआ बाहर चला गया। दोनों सहेलियों की हल्की-सी हँसी छूट गई जैसे उन्हें अपनी सफलता के चिह्न दिखाई देने लगे हों।
रात को खाने के समय विनोद बाहर से न लौटा। कुछ समय सब यही विचारकर प्रतीक्षा करते रहे कि यही कहीं चहलकदमी कर रहा होगा। जब बहुत समय तक वह न लौटा तो सबको चिंता हुई। कुछ व्यक्ति इधर-उधर उसकी खोज में निकले; किंतु उसका कहीं पता न चला।
उसके यहाँ टेलीफोन करने पर सूचना मिली कि अकस्मात् अस्वस्थ होने से वह घर लौट आया था; चिंता का कोई कारण नहीं। यह सूचना विनोद की भाभी ने स्वयं ही दी थी इसीलिए कुछ सांत्वना हुई, परंतु कामिनी का भयभीत मन बार-बार उससे यही कह रहा था कि वह उसकी बात का बुरा मानकर चला गया।
विनोद को बहाना ही चाहिए था। उसने आते ही भाभी से कह दिया कि अब कामिनी इस घर में कभी न आएगी, नहीं तो वह यहाँ नहीं रहेगा। भाभी ने बहुत समझाया कि विधि का विधान टल नहीं सकता, भाग्य के लिखे पर धैर्य करना ही उचित है; परंतु उसने किसी की न सुनी और कमरे में चुपचाप पड़ा रहा।
दूसरे दिन उसने ऑफिसर से मिलकर अपनी बदली करवा ली। इस बात की सूचना उसने किसी को कानोंकान न होने दी और एक ही दिन पश्चात् एकाएक जाने की तैयारी करने लगा।
'तुम्हें जाना कहां है?' भाभी ने उसे तैयार होते देखकर पूछा।
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