ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
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कुछ दिनों के बाद कम्पनी के पाँच वर्ष समाप्त होने वाले थे। कम्पनी और बरमन स्टेट के मध्य नये समझौते पर हस्ताक्षर होने थे जिसमें अपने पिता के स्थान पर अब की माधवी की सहमति आवश्यक थी। विनोद यह पहले से ही जानता था और अवसर के आते ही उसने भविष्य में कम्पनी को स्टेट किराये पर देने से इंकार कर दिया।
उसके एकाएक इस इन्कार पर कम्पनी वाले विस्मित रह गए। उन्होंने उन दोनों को स्टेट कम्पनी को देने के लाभ समझाए और उनसे प्रार्थना भी की, परन्तु वे न माने और कम्पनी को अन्त में वह सब भूमि छोड़नी पड़ी जिसमें चाय की खेती थी। केवल वह भाग, जिसमें उनकी कुछ कोठियां थीं, कुछ समय तक और उनके अधिकार में रहा।
अब विनोद अपनी स्टेट का स्वयं स्वामी था। यद्यपि उसकी स्टेट कम्पनी की स्टेट से बहुत छोटी थी तथापि वह इसे स्वतन्त्र पाकर प्रसन्न था।
स्टेट का अधिकार लेते ही उसने मज़दूरों की भरती आरम्भ कर दी। उनकी मज़दूरी कम्पनी वालों की अपेक्षा कम थी; परन्तु फिर भी विनोद की खेती के लिए लोग धड़ाधड़ आने लगे।
खेतों के अतिरिक्त काफी भूमि ऊसर थी जो ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे फैली हुई थी। अंग्रेज़ कम्पनी ने कई बार उसे बोने का प्रयत्न किया था; परन्तु प्रति वर्ष की बाढ़ के कारण वे सफल न हो सके। विनोद ने बाढ़ की परवाह न करते हुए ऊसर भाग को भी अपने साथ मिला लिया और वहाँ चाय की खेती आरम्भ कर दी।
अंग्रेज़ कम्पनी और विनोद के मध्य आए दिन वैर बढ़ता गया। वे जानते थे कि इन खेतों से विनोद उनके व्यापार के भेद जान जाएगा और कम्पनी को हानि पहुँचाएगा।
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