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ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट

एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


दूसरे ही दिन केथू को बुलवाकर उसने रजनिया को उनके यहाँ भिजवा देने को कहा। केथू उन्हें यह कष्ट न देना चाहता था; परन्तु रजनिया की लाज के लिए उसे विनोद का कहा स्वीकार करना पड़ा। अगले दिन वह उनके यहाँ आ गई।

माधवी का स्वास्थ्य भी अब ऐसा रहने लगा था कि उसके साथ किसी स्त्री का होना आवश्यक था। घर के काम-काज में भी रजनिया की बड़ी सहायता थी। माधवी के साथ रहने से रजनिया में स्वयं बड़ा परिवर्तन आ गया। अब वह कोई देहातिन न लगती थी बल्कि एक शिष्ट, शिक्षित लड़की प्रतीत होती थी। माधवी ने उसे नये ढंग से साड़ी पहना दी, दो चोटियाँ बनाना और बोलचाल में नम्रता लाने की शिक्षा देनी आरम्भ कर दी। अवकाश मिलने पर उसे थोड़ा-थोड़ा पढ़ाने भी लगी।

इधर माधवी रजनिया को शिक्षा द्वारा एक अच्छी लड़की बनाने में लगी हुई थी और उधर विनोद केथू के साथ बस्ती वालों की जागृति पर तुला हुआ था। कम्पनी वालों ने मज़दूरों को कुछ और सुविधाएँ भी दी थीं। उसकी मेहनत सीधे तो नहीं, हाँ, छिपे तौर पर रंग दिखा रही थी।

इन्ही दिनों दूसरा महायुद्ध समाप्त हो गया और यह शुभ सूचना हवा की-सी तेज़ी से सर्वत्र फैल गई। अंग्रेज़ों की फिर विजय हुई और हर ओर हर्ष के सोते फूट पड़े।

अंग्रेज़ कम्पनी के दफ्तर भी इस अवसर पर दो दिन के लिए बन्द हो गए। गरीब स्त्रियों, बच्चों और मज़दूरों को मिठाई और कपड़े बाँटे गए, नाच-रंग की सभाएँ की गईं और लोग कम्पनी की दयालुता के गुण गाने लगे।

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