लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट

एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

429 पाठक हैं

'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


'डॉक्टर! किसलिए?'

'तुम जो बीमार हो।'

'तो उससे क्या कहिएगा?'

'ओह...यह तो मैं भूल ही गया। हाँ, उसे क्या कहूँ? कैसी बीमारी है?'

माधवी इसपर खिलखिलाकर हँसने लगी। विनोद की बालकों की-सी हरकतें देखकर वह प्रसन्न हो रही थी। उसने कम्बल हटा दिया और बिस्तर से उतरकर खिड़कियाँ खोलने लगी। विनोद आश्चर्य से बैठा उसे देखता रहा, वह उससे अधिक पूछताछ भी न कर सका।
खिड़कियाँ खुलते ही हवा के तेज़ झोंके आकर उसके बालों से खेलने लगे। माधवी होंठों पर चंचल मुस्कान लिए उसके पास आई और बोली-'अजी, किसी डॉक्टर की आवश्यकता नहीं।'

'तो क्या यह सब मज़ाक था?'

'नहीं तो! कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जिसमें डॉक्टर की आवश्यकता नहीं होती।'

'वह क्यों?'

'कैसे कहूँ! लज्जा आती है।'

'तो घूँघट निकालकर कह दो ना! कैसी बीमारी है?'

'तो कह दूँ?' माधवी ने लज्जा से अपना मुख दूसरी ओर मोड़ लिया।

'अरे, यह संकोच!'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय