ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'डॉक्टर! किसलिए?'
'तुम जो बीमार हो।'
'तो उससे क्या कहिएगा?'
'ओह...यह तो मैं भूल ही गया। हाँ, उसे क्या कहूँ? कैसी बीमारी है?'
माधवी इसपर खिलखिलाकर हँसने लगी। विनोद की बालकों की-सी हरकतें देखकर वह प्रसन्न हो रही थी। उसने कम्बल हटा दिया और बिस्तर से उतरकर खिड़कियाँ खोलने लगी। विनोद आश्चर्य से बैठा उसे देखता रहा, वह उससे अधिक पूछताछ भी न कर सका।
खिड़कियाँ खुलते ही हवा के तेज़ झोंके आकर उसके बालों से खेलने लगे। माधवी होंठों पर चंचल मुस्कान लिए उसके पास आई और बोली-'अजी, किसी डॉक्टर की आवश्यकता नहीं।'
'तो क्या यह सब मज़ाक था?'
'नहीं तो! कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जिसमें डॉक्टर की आवश्यकता नहीं होती।'
'वह क्यों?'
'कैसे कहूँ! लज्जा आती है।'
'तो घूँघट निकालकर कह दो ना! कैसी बीमारी है?'
'तो कह दूँ?' माधवी ने लज्जा से अपना मुख दूसरी ओर मोड़ लिया।
'अरे, यह संकोच!'
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