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धर्म रहस्य

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :131
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9559
आईएसबीएन :9781613013472

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समस्त जगत् का अखण्डत्व - यही श्रेष्ठतम धर्ममत है मैं अमुक हूँ - व्यक्तिविशेष - यह तो बहुत ही संकीर्ण भाव है, यथार्थ सच्चे 'अहम्' के लिए यह सत्य नहीं है।

सार्वभौमिक धर्मलाभ का उपाय

28 जनवरी 1900 को केलिफोर्निया के पैसेडेना नगरस्थ सार्वभौमिक धर्ममन्दिर में स्वामीजी द्वारा दी हुई वक्तृता

जिस अनुसन्धान के फल से हम ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करते हैं, मनुष्यों के हृदय में उसकी अपेक्षा दूसरा प्रियतर अनुसन्धान कोई नहीं है। अतीत काल में, अथवा वर्तमान काल में मनुष्यों ने 'आत्मा', 'ईश्वर' और 'अदृष्ट' आदि के सम्बन्ध में जितनी आलोचनाएँ की हैं, उतनी आलोचना और किसी विषय की नहीं की। हम अपने दैनिक कर्म, उच्चाकांक्षा और अपने कर्तव्य आदि में चाहे कितने ही क्यों न डूबे रहें, हमारे कठोरतम जीवन- संग्रामों में कभी कभी एक ऐसा विराम का क्षण आ जाता है जब हमारा मन सहसा रुककर इस जगत्-प्रपंच के पार क्या है, इसे जानना चाहता है। कभी कभी वह अतीन्द्रिय राज्य का आभास पाता है, और उसी के फल-स्वरूप उसे पाने की यथासाध्य चेष्टा करता रहता है। ऐसा सभी देशों, सभी कालों में होता रहा है। मनुष्य अतीन्द्रिय-दर्शन की इच्छा करता है, अपने को विस्तार करने की इच्छा करता है; और हम जिसे उन्नति या क्रमविकास कहते हैं, उसको सदा उसी एक अनुसन्धान - मनुष्य-जीवन की चरम गति का अनुसन्धान, ईश्वरानुसन्धान - के द्वारा ही नापा गया है।

विभिन्न जातियों के विभिन्न प्रकार के समाज-पठनों से जिस तरह हमें अपने सामाजिक जीवन-संग्राम का परिचय मिलता है, उसी तरह जगत् के विभिन्न धर्मसम्प्रदाय-समूह ही मनुष्यों के आध्यात्मिक जीवन-संग्राम का परिचय प्रदान करते हैं। भिन्न भिन्न समाज जिस प्रकार सर्वदा ही आपस में कलह और संग्राम कर रहे हैं, उसी प्रकार ये धर्म-सम्प्रदाय भी सर्वदा परस्पर कलह और संग्राम कर रहे हैं। किसी एक विशेष समाज के लोगों का दावा है कि एकमात्र उन्हें ही जीवित रहने का अधिकार है, - और जब तक सम्भव हो, वे दुर्बल के ऊपर अत्याचार करते हुए, अपना वह अधिकार जमाये रहते हैं। हमें ज्ञात है कि ऐसा ही भीषण संघर्ष वर्तमान समय में भी दक्षिण अफ्रीका में हो रहा है। इसी तरह प्रत्येक धर्मसम्प्रदाय का भी दावा है कि केवल उसे ही जीवित रहने का ऐकान्तिक अधिकार है।

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