ई-पुस्तकें >> धर्म रहस्य धर्म रहस्यस्वामी विवेकानन्द
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समस्त जगत् का अखण्डत्व - यही श्रेष्ठतम धर्ममत है मैं अमुक हूँ - व्यक्तिविशेष - यह तो बहुत ही संकीर्ण भाव है, यथार्थ सच्चे 'अहम्' के लिए यह सत्य नहीं है।
अब कर्मयोग अर्थात् कर्म द्वारा ईश्वर-लाभ की बात लीजिये। संसार में ऐसे लोग बहुत देखे जाते हैं, जिन्होंने मानो किसी न किसी प्रकार का काम करने के लिए ही जन्म ग्रहण किया है। उनका मन केवल चिन्तन-राज्य में ही एकाग्र होकर नहीं रह सकता - वे केवल कार्य को समझते हैं, जो आँखों से देखा जा सकता है और हाथों से किया जा सकता है। इस प्रकार के लोगों के लिए एक जीवन-विज्ञान की आवश्यकता है। हममें से प्रत्येक ही किसी न किसी प्रकार का काम कर रहा है; परन्तु हम लोगों में अधिकतर लोग अपनी अधिकांश शक्ति का अपक्षय करते हैं, कारण यह है कि हमें कर्म का रहस्य ज्ञात नहीं है। कर्मयोग इस रहस्य को समझा देता है और यह शिक्षा देता है कि कहाँ, किस भाव से कार्य करना होगा, एवं उपस्थित कर्म में किस भाव से हमारी समस्त शक्ति का प्रयोग करने से सर्वापेक्षा अधिक फल-लाभ होगा। हाँ, कर्म के विरुद्ध, यह कहकर जो प्रबल आपत्ति उठायी जाती है कि वह दुःखजनक है, इसका भी विचार करना होगा। सब दुःख और कष्ट आसक्ति से आते हैं। मैं काम करना चाहता हूँ मैं किसी मनुष्य का उपकार करना चाहता हूँ। अब प्राय: यही देखा जाता है कि मैंने जिसकी सहायता की है, वह व्यक्ति सारे उपकारों को भूलकर मुझसे शत्रुता करेगा - फल यह होगा कि मुझे कष्ट मिलता है। ऐसी घटनाओं के फल से ही मनुष्य कर्म से विरत हो जाता है और इन दुःखों और कष्टों का भय ही मनुष्य के कर्म और उद्यम को अधिक नष्ट कर देता है। किसकी सहायता की जा रही है अथवा किस कारण से सहायता की जा रही है, इत्यादि विषयों पर ध्यान न रखते हुए अनासक्त भाव से केवल कर्म के लिए कर्म करना चाहिए - कर्मयोग यही शिक्षा देता है। कर्मयोगी कर्म करते हैं, कारण, यह उनका स्वभाव है, वे अपने दिल में इसका अनुभव करते हैं कि ऐसा करना ही उनके लिए कल्याणजनक है - इसको छोड़ उनका और कोई उद्देश्य नहीं रहता। वे संसार में सर्वदा दाता का आसन ग्रहण करते हैं, कभी किसी वस्तु की प्रत्याशा नहीं रखते। वे जानबूझकर दान करते जाते हैं, परन्तु प्रतिदान-स्वरूप वे कुछ नहीं चाहते, इसी कारण वे दुःखों के हाथ से रक्षा पाते हैं। जब दुःख हम को ग्रसित करता है, तब यही समझना होगा कि यह केवल 'आसक्ति' की प्रतिक्रिया है।
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