ई-पुस्तकें >> भक्तियोग भक्तियोगस्वामी विवेकानन्द
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स्वामीजी के भक्तियोग पर व्याख्यान
भिन्न भिन्न धर्मों के भिन्न भिन्न सम्प्रदाय मनुष्य जाति के सम्मुख केवल एक एक आदर्श रखते हैं, परन्तु सनातन वेदान्त धर्म ने तो भगवान के मन्दिर में प्रवेश करने के लिए अनेकानेक मार्ग खोल दिये हैं और मनुष्य जाति के सम्मुख असंख्य आदर्श उपस्थित कर दिये हैं। इन आदर्शों में से प्रत्येक उस अनन्तस्वरूप भगवान की एक एक अभिव्यक्ति है। परम करुणा के वश हो वेदान्त मुमुक्षु नर-नारियों को वे सब विभिन्न मार्ग दिखा देता है जो अतीत और वर्तमान में तेजस्वी ईश्वरतनयों या ईश्वरावतारों द्वारा मानव-जीवन की वास्तविकताओं की कठोर चट्टानों से काटे गये हैं; और वह हाथ बढ़ाकर सब का, यहाँ तक कि भविष्य में होनेवाले लोगों का भी, उस सत्य और आनन्द के धाम में स्वागत करता है जहाँ मनुष्य की आत्मा मायाजाल से मुक्त हो सम्पूर्ण स्वाधीनता और अनन्त आनन्द में विभोर होकर रहती है।
अत: भक्तियोग हमें इस बात का आदेश देता है कि हम भगवत्प्राप्ति के विभिन्न मार्गों में से किसी के भी प्रति घृणा न करें, किसी को भी अस्वीकार न करें। फिर भी, जब तक पौधा छोटा रहे, जब तक वह बढ़कर एक बड़ा पेड़ न हो जाय, तब तक उसे चारों ओर से रूँध रखना आवश्यक है। आध्यात्मिकता का यह छोटा पौधा यदि आरम्भिक, अपरिपक्व दशा में ही भावों और आदर्शों के सतत परिवर्तन के लिए खुला रहे, तो वह मर जायगा। बहुतसे लोग 'धार्मिक उदारता' के नाम पर अपने आदर्शों को अनवरत बदलते रहते हैं और इस प्रकार अपनी व्यर्थ की उत्सुकता तृप्त करते रहते हैं। सदा नयी बातें सुनने के लिए लालायित रहना उनके लिए एक बिमारी-सा, एक नशा-सा हो जाता है। क्षणिक स्नायविक उत्तेजना के लिए ही वे नयी नयी बातें सुनना चाहते हैं, और जब इस प्रकार की उत्तेजना देनेवाली एक बात का असर उनके मन पर से चला जाता है, तब वे दूसरी बात सुनने को तैयार हो जाते हैं। उनके लिए धर्म एक प्रकार से अफीम के नशे के समान है और बस उसका वहीं अन्त हो जाता है।
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